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25 Apr 2022 · 7 min read

धरम संकट मुक्त

धरम संकट मुक्त।
-आचार्य रामानंद मंडल।
राजेश्वर प्रताप प्रतापगढ़ के पूर्व जमींदार रहलन।हुनका तीन सैय बिघा जमीन रहे।लम्बा चौड़ा दूमंजिला हबेली।दूरा पर दू गो हाथी,दूगो घोड़ा,दस जोड़ा बैल,चार गो भैसी आ चार गो गाय रहे।तहिना नौकर नौकरानी भी रहे। टहलू-टहलनी, खबास-खबासिन , गोबर कढनी रहे।हर जोते के लेल हरबाह, माल जाल के देखभाल लेल नौकर,खेती करे लेल मजदूर-मजदूरिन आ जेठरैयत रहे।केस मुकदमा देखे लेल मैनेजर। हाथी के लेल महावत,घोड़ा के लेल सहसवान, फिटिंग गाड़ी के लेल कोचवान, बैलगाड़ी के लेल बहलबान आ एगो जीप के लेल ड्राइवर रहे।
पच्चीस बरख के राजेश्वर प्रताप शादी सुदा रहे।घरबाली मृणालिनी भी रामगढ़ के जमींदार सूर्य प्रताप के एकलौती बेटी रहे। बाइस बरस के मृणालिनी पांचवां तक पढल रहे। साढे पांच फीट ,नाक नक्श आ शरीर के कटिंग ठीक रहे। लेकिन रंग से मद्धिम रहे।माने कि श्यामला रहे। स्नातक राजेश्वर प्रताप अपने गोर भुराक आ लगभग छह फीट के बांका जवान रहे।करिया मुंछ हुनका जवानी में चार चांद लगाबे।दूनू अपन जबानी में गोंता लगबैत पारिवारिक जीवन जीयत रहे।
एक दिन राजेश्वर प्रताप के नजर अपन गोबर कढनी दलित बिधबा कोसलिया के एकलौती बेटी रनिया पर परल।रनिया वोइ दिन अपना बिमार मतारी के बदले गोबर काढे आयल रहे। रनिया खूब सुन्नर रहे।अठारह बरस के रनिया के देखते राजेश्वर प्रताप के ठकमूर्गी लाग गेल।माने कि देखते रह गेल। कनिका देर के बाद राजेश्वर प्रताप बोललन-तू त कोसलिया के बटी छे न। रनिया बोललक-जी। राजेश्वर प्रताप बोललन-बहुत दिन के बाद देखलिउ हैय। कंहा रहैत रहलैय हैय। रनिया बोललक-हम अपना मामा इंहा रहैत रहलैय हैय।हमर नानी बिमार रहैत रहल हैय।नानी के सेवा लेल मामा बुला ले रहल हैय।आबि हमर नानी मर गेल।तैइला आबि हम इंहे रहब। आइ हमरा माय के बुखार लागल हैय तैइला काम करे हमही आ गेली हैय।
इ बात सुनके राजेश्वर प्रताप कहलन-हं।माय के आराम करे दे आ काम करे तू ही आ।आ राजेश्वर प्रताप माल जाल के घर देखैत हवेली के ओर चल गेलन।
राजेश्वर प्रताप हबेली में त चल अयलन।
लेकिन मन मालजाल के घर में रह गेल।दिल रनिया मे अटक गेल। राजेश्वर प्रताप के रात के नीन उड़ गेल।रात में एक बार राजेश्वर प्रताप के मृणालिनी बोललक-कि बात आइ नीन न अबैय कि।
राजेश्वर प्रताप आंख मुलने कहलन-कोनो बात न।नीन आ रहल हैय कहके पहिले बार झूठ बोललन।
राजेश्वर प्रताप केहुना क के रात बितैलन।माने कि रनिया के इंतजार करैत रहलन।
रनिया गोबर काढे सात बजे सुबह में आयल।उ रहरी के खरहरा से मालजाल के थर खहरैत रहे। राजेश्वर प्रताप भी मालजाल के घर के मुयैना करे के बहाने आ गेलन। रनिया थोड़ा सकपकायल।फेर रनिया अपना ओढ़नी के समाहर लक जे हरबरायला के कारण नीचा गिर गेल रहै।
राजेश्वर प्रताप बोललन-माय के कि हालत हौउ। बुखार कम भेलैइ कि न। रनिया बोललक-न। अभी हाथ-मथा बरा तपत हैय। राधा किसुन डागडर के दबा चलै हैय। राजेश्वर प्रताप बोललन-अच्छे इ ले एक सैय रूपया आ माय के दे दिहे आ कहिये मालिक दबाइ ला देलथुन हैय।
रनिया घरे गेल आ माय के एक सैय रुपया देलक आ कहलक कि मालिक दबाइ ला देलथुन हैय।
कौशल्या बोललक-मालिक के हमरा सभ पर धियान रहै छैय।
रनिया नित दिन काम करे आबे लागल। राजेश्वर प्रताप भी नित दिन रनिया से मिले लागल। कहियो रनिया के देर हो जाय त राजेश्वर प्रताप ब्याकुल हो जाय। कहियो राजेश्वर प्रताप के देर हो जाय त रनिया ब्याकुल हो जाय।माने के ब्याकुलता दोनों ओर रहे। माने कि इ प्रेम के आहट रहे।
फेर रनिया काम करे आयल। राजेश्वर प्रताप भी आ गेलन। राजेश्वर प्रताप पुछलन-माय के कि हाल चाल हौउ। रनिया कहलक-धीरे धीरे सुधार हो रहल हैय।
राजेश्वर प्रताप हबेली के ओर चल गेलन।आ रनिया अपना घरे।
रनिया फेर सबेरे काम करे आयल। राजेश्वर प्रताप भी आ गेलन। राजेश्वर प्रताप रनिया से वोकरा माय के हाल चाल पूछलन। रनिया बतैलक कि माय के हाल चाल ठीक हो रहल हैय। रनिया के राजेश्वर प्रताप के सहानुभूति आ व्यग्रता प्रेम के ओर बढ़े लागल
तहिना राजेश्वर प्रताप के रनिया के सुन्दरता आकर्षित करे लगल आ व्यग्रता प्रेम के डोर में बांधे लागल।
एनी मृणालिनी राजेश्वर प्रताप के व्यवहार में आयल परिवर्तन के खोज मे रहे।पता न लागे। लेकिन एक रात में जब मृणालिनी पूछलक कि अंहा हमरा पहिले लेखा प्यार न करै छी त राजेश्वर प्रताप कहलन कि हमरा रनिया से प्रेम भ गेल हैय। मृणालिनी कहलक-वैइ गोबर कढनी कोसलिया के बेटी रनिया से। राजेश्वर प्रताप कहलन-हं।वोकरा बिना हम न रह सकै छी। मृणालिनी कहलक- इ अंहा कि बात करै छी।वोइ गोबर कढनी के बेटी से अंहा विआह क के हबेली में रखबै।इ हम न होय देब।
संजोग इ भेल कि रनिया के मामा रनिया के बिआह बगल के गांव शिवहर में ठीक क देलक। रनिया बिआह के बिरोध न कर सकल। राजेश्वर प्रताप भी गुम रहगेल। तय समय पर रनिया के बिआह हो गेल। रनिया ससुरा चल गेल। जाति आ समाज के रिवाज के मुताबिक चार दिन बाद अपना नहिरा प्रतापगढ़ आ गेल।
कल्ह सबेरे फेर रनिये काम करे आयल। राजेश्वर प्रताप माल जाल के घर के देखे बहाने फेर आ गेलन। राजेश्वर प्रताप कहलन-तू आ गेला।हम त तोरा बिना न रहब। रनिया कहलक-हमहू अंहा बिना न रह सकै छी। लेकिन हम बिआह के बिरोध न कर पैली। राजेश्वर प्रताप कहलन-हमहु कुछ न कर पैली। रनिया आ राजेश्वर प्रताप के प्रेम परवान चढ़े लागल।
चार महीना के बाद रनिया के दूरागमन के दिन आयल। लेकिन रनिया दुरागमन के साफ नकार देलक।माय मामा के भी समझावे के कोई असर रनिया पर न भेल। रनिया आ राजेश्वर प्रताप के संबंध के उड़ैत खबर लरिका आ वोकरा बाप के मालूम भे गेल।उ रनिया के संबंध के तोड़ देलक। माने कि छोरा छोरी भे गेल।
ससुरा से रनिया के संबंध टूटे के खबर से रनिया आ राजेश्वर प्रताप खुब खुश भेल। लेकिन मृणालिनी चिंतित भेल। राजेश्वर प्रताप से बाजल-कि सुनै छिये। ससुरा से रनिया के संबंध टुट गेले हैय। रनिया ससुरा जाय से इंकार कर देल कै हैय। हमरा त अइमे अंही के हाथ लगैय हैय।अही सिखैले पढ़ैले होबै। राजेश्वर प्रताप हंसैत कहलन-हम कैला सिखैबै-पढैबै।मृणालिनी बाजल-हंयो। जमींदार परिवार सभ मे एहिना होइत रहै हैय। हमरो एगो जबान विधवा काकी अपने नौकर से संबंध रखले छथिन। परिवार में सभ चुपचाप हैय। इ एगो समझौता हैय। हमहु अंहा से समझौता करै छी लेकिन अइ हबेली मे हम रनिया के न रहे देब।
राजेश्वर प्रताप कहलन-हमहु रनिया के अइ हबेली मे न लायब।अलगे रनिया के टोले मे मकान बना देबै आ लिव इन रिलेशनशिप में रहब।
अब राजेश्वर प्रताप रनिया के एगो मकान
बना देलक।आ रनिया के नाम से बिस बिघा जमीन भी लिख देलक। रनिया के पति जगह रनिया के बाप के नाम आ पता प्रताप गढ लिखायल गेल। राजेश्वर प्रताप दूनू जगह में समय बिताबे लागल। रनिया के मायो परिस्थिति से समझौता कर लेलक। कुछ दिन बाद रनिया के माय कौसलिया चल बसल।समय पाके रनिया के एगो बेटा भेल।नाव धैलक मनोज कुमार आ मृणालिनी से एगो बेटी भेल। नाव रखलक माधबी। मनोज कुमार से माधबी छौह महीना छोट रहे।
मनोज आ माधबी जौरे जौरे पढे। मनोज के बाप के नाम रनिया के बिआहल पति के नाम लिखायल गेल। जाति भी पति के लिखायल गेल। दुनू गोरे जवान भे गेल। दुनू गोरे में प्रेम भी पनप गेल। माधबी भी ग्रैजुएट हो गेल। समय पाके आरक्षण लाभ से मनोज सिंचाई विभाग में इंजीनियर भे गेल।आबि मनोज आ माधबी बिआह करे के बात करे लागल। मनोज के मन मे एगो बदला के भी भाव रहे।अपना माय आ राजेश्वर प्रताप के संबंध के लेके।समाज के ताना वोकरा मन मे बदला लेबे के आग लगा देले रहे।
मनोज आ माधबी इ जाने कि हम आ माधबी दुनू दू जात के छी। अइसे बिआह में कोनो बाधा न होयत।
एगो रात में माधबी अपना माय के अपन आ मनोज के प्रेम संबंध के बारे में बतैलक।आ कहलक कि हम दूनू गोरे विआह करे चाहैत छी। मृणालिनी अपन माथा पकर लेलक। मृणालिनी कहलक कि हम तोरा बाबू जी से विचार क के बतैयबौउ।राते में सुतैत बेर मृणालिनी राजेश्वर प्रताप के माधबी के बारे में बतैलक। राजेश्वर प्रताप कहलन-इ विआह न हो सकै छैय।माधबी के माय रनिया न हैय लेकिन हम बाप छी आ मनोजो के बाप हम छियै। भले मृणालिनी ,तोहर जनमल मनोज न हौअ । हम मनोज के जैविक बाप छियै।माने कि माधबी आ मनोज के बाप हम छियै। मतलब मनोज माधबी के जैविक भाई हैय। माने मनोज माधबी भाई -बहिन हैय।माधबी आ मनोज में बिआह न हो सकै छैय। हिन्दू धर्म में इ वर्जित हैय।दुनु दू जात के होके भी विआह न हो सकै हैय।इ त बरका धरम संकट हैय। इ सभ बात राते मे मृणालिनी माधबी के कोठरी मे आके बतैलक आ कहलक माधबी अइ अइ धरम संकट से तू ही मुक्त करा सकै छे। मृणालिनी अपना कोठरी में सुते चल गेल।माधबी बहुत देर तक जग ले सोचैत रहे कि हमरे बाबू जी के जनमल मनोज हैय।वो हमर जैविक भाई हैय। हमरा दूनू में बिआह न हो सकै हैय।हम दुनू भाई-बहन छी। सबेरे मनोज भैया से मिलब।इ सोचते सोचते निन पर गेल।
मनोज अपना माय रनिया के अपना आ माधबी के प्रेम के बारे में बतैलक आ बिआह करे के बारे में कहलक। रनिया कहलक-मनोज तोहर आ माधबी के विआह न हो सकै छैय।माधबी हमर जनमल न हैय लेकिन माधबी के बाबू जी भी तोहर बाबू जी हौअ।बौआ मनोज इ एगो धरम संकट हैय। आइ तोरे मुक्त करे के हौआ।
मनोज कहलक माय इ बात हम जनैय छी के हम माधबी के जैविक भाई छियै। लेकिन हमरा मन में समाज के उपेक्षा आ ताना रखैल पुत्र कहला से हमरा मन में बदला लेबे के भाव आ गेल रहल हैय। समाज हमरा आ माधबी के भाइ-बहिन न मानै हैं। हमरा बड़ा मानसिक पीड़ा भेल हैय। आब इतना त हम जनैय छी कि अगरा जात के नारी दलित जात के मरद के रखैल के प्रेमिका कहै हैय। आ दलित जात के नारी अगरा जात के प्रेमिका के रखैल कहे हैय। इ मापदंड समाज में ब्यापत हैय। जबकि लिव इन रिलेशनशिप अतीत काल से चल रहल हैय। वर्तमान समय में एकर चलन और बढ गेल हैय।लेकिन तोरा कहला पर हमरा मन के बदला के भाव मिट गेल। हमरा मन से अगरा आ दलित के भाव मिट गेल।आबि हमरा मन में भाई-बहन के प्रेम जाग गेल।हम माधबी के जैविक भाई छियै आ माधबी हमर बहिन।
सबरे कौआ के कांव कांव से माधबी के निन टुटल। मनोज के रनिया उठैलक। सबेरे छह बजे टहलैत बेर जब मनोज आ माधबी मिलल त भाई-बहन के रूप में मिलल।माधबी कहलक-भैया मनोज।मनोहर कहलक-बहिन माधबी।आ दुनू भाई-बहिन आपस में गला मिल गेल।
आइ राजेश्वर प्रताप, मृणालिनी ,माधबी, रनिया आ मनोज धरम संकट से मुक्त हो गेल।
सर्वाधिकार@रचनाकार।
रचनाकार-आचार्य रामानंद मंडल सामाजिक, सीतामढ़ी।

Language: Maithili
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