धरती ये जब से जन्मी है (गीत)
धरती ये जब से जन्मी है, दिन सबके बीते जाते हैं।
फेर समय का यह कहता है,मौसम भी बदले जाते हैं।
दुख का दौर बदल कर कलतक, खुशियों में क्या ढल पाएगा?
थोड़ा धीरज खुद पर कर ले,थोड़ा खुद ही मिल जाएगा।
सुनो समय यह कहता हमसे, वक्त नहीं जीते जाते हैं।
धरती ये जब से जन्मी है…….
आज घड़ी आई है ऐसी, मौन धरा का है हर मानव।
अपना जाल बिछा कर देखो, चीख लगाता है बस दानव
चुप रहने से कभी कभी, हम सब कुछ हारे जाते हैं
धरती ये जब से जन्मी है…….
तो उठा शंख इन हाथों में, शंखनाद आगाज़ करें हम।
तीन लोक तक पहुँचेगी जो, ऐसी अब आवाज करें हम।
मिट जाए अँधियार निशा का, दीपक जब जलते जाते हैं।
धरती ये जब से जन्मी है…..