धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ
मन की यति,लय, छन्द भाष में केवल उनका नाम लिखूँ।
जी करता है की धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ।।
थकते प्यासे इस जीवन को सदियों का आराम लिखूँ।
जी करता है की धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ ।।
बादल ने जैसे छोड़ा जल, वैसे छोड़ा जग ने ।
हार मान कर ठहर गया, था भूला चलना पग ने।।
तब मन ने आश्रय था माँगा चरितों से राघव के,
संकट सारे मिटे शीघ्र ही,इस मायामय भव के ।।
दृढ़ संकल्पों के राघव संग, रावण का संग्राम लिखूँ।।
जी करता है की धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ ।।
हैं राजा जो भूमण्डल के,सब के हृदयातल के।
पर विनम्रता पावन प्यारे,राघव परम् सरल के।
परमपिता ने वचन निभाए अपने पितु दशरथ के,
विपिनों के उद्धार करे जो,बन राही वनपथ के ।।
नर से नारायण बनने की यात्रा को प्रणाम लिखूँ।।
जी करता है की धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ ।।
करुणा के वरुणालय राघव, शरणागत वत्सल हैं।
मिलते राम सहज ही उनको,जो मन से निच्छल हैं।
लोक हितैषी काम करे वो,राम काम कहलाता ।
राम चरित्रों में चलकर नर, देव तुल्य बन जाता ।।
परमसत्य के आदर्शों का नित्य निरंजन धाम लिखूँ।
जी करता है की धरती के कण कण में श्री राम लिखूँ ।।
✒️©® हरीश पटेल “हर”
ग्राम – तोरन, (थान खम्हरिया)
बेमेतरा।