धरती की अब प्यास —– (बरसात — गीत)
*************गीत************
बह रही है हवा सुहानी, बरखा रानी बरसेगी।
धरती की अब प्यास बुझेगी, बीरहन भी न तरसेगी।।
धरती की अब प्यास —————————- तरसेगी।।
(१)
कारे कजरारे मेघो ने,
दस्तक देना शुरू किया।
तपती भीषण गर्मी ने तो,
जाने का मन बना लिया।।
जुटे हुए है कृषक खेत में, फसलें जमी से उपजेगी।
धरती की अब प्यास ————————— तरसेगी।।
(२)
साजन सजनी संग में होंगे,
झरते हुए इस सावन में।
झरने बहेंगे नदी ताल सब,
झूले डालेंगे बागन में।।
नेह बहेगा हर कोई कहेगा,”बरसात” तो ऐसी बरसेगी।।
धरती की अब प्यास ——————- तरसेगी।।
(३)
हम भी भीगे तुम भी भीगो,
छोड़ के सारी चिंताएं।
लगी बरसने रिमझिम रिमझिम,
नीर भरी यह सारी घटाएं।।
पीर मिटा के प्यार लुटा दो, “अनुनय” प्रीत ही बरसेगी।
धरती की अब प्यास ———————- तरसेगी।।
राजेश व्यास अनुनय
8823815691