धरती का काव्य
धरती का काव्य
पंक्तियाँ हरियाली
इसका सृजन
बढ़े उपजाऊपन ।
रचियता भगवान
संचियता किसान
धरती के काव्य की यही समीक्षा
बंजर न रहे खेत खलिहान ।
मेघ करता संरक्षण
अर्पित करता जल न्योछावर राशि
इस काव्य का पाठक और शिक्षक
भुख के अधिशासी ।
धरती के काव्य का यही पुरस्कार
न मचे जग में भुख से हाहाकार ।