धरती और आसमां का मिलन
जमीं से आसमां के मिलन का एहसास तुमसे
है धन्य वह माता जिसे मिला नूरे सहवास तुमसे।
सुख-दुख के मध्य का एहसास है तुमसे
प्रकृति और पुरुष के बीच का एहसास भी तुमसे।
सूरज चांद के मध्य अंतर का एहसास भी तुमसे
हजारों मील लम्बे रास्ते है फिर भी
होगी मंजिलो की रोशनी तुमसे।
साहिल से साहिल तक कारवां गुजर गया
गर तुम न होते तो न होता मिलन उनसे।
नदी की धार काटती पतवार हो तुम
उठती, गिरती लहरों में मझधार हो तुम।
कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे
आशीषों का आंचल भरकर मिलन की राह देखते रहे।।