धन
धन तो जोड़ लिया भर भर,
कर थैले।
पर इस दौड़ में हाथ,
कर लिए अपराधो से मैले।
धन की खोज में रिश्ते खो दिए।
अपनो की आंखों में आसूं दे दिए।
कोई चला विदेश धन कमाने,
के लिए।
तो कोई चला प्रदेश,
अपनो से सब बिछड़ गए,
न रहा सूख और दुःख में भेद।
धन की तलाश में इंसान ,
इस तरह खो गया।
मानो भंवरा बैठा फूल पर,
और उड़ना ही भूल गया।
सब जानते हैं कि साथ नही जायेगा।
फिर भी होड़ है एक, कि हमारे न सही,
बच्चो के तो काम आयेगा।