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4 Sep 2019 · 2 min read

धन

जीवन यापन के लिए, धन का बहुत महत्व।
धन से ही मिलते हमें, जग के सारे तत्व।। १

दान, भोग औ” नाश हैं, धन की गतियाँ तीन।
दान, भोग जिसका नहीं, वह धन हुआ विलीन।।२

सब की चाहत है यही, हो धन की बरसात।
बढ़ा लोभ जग में बहुत, केवल धन की बात।। ३

है धन की महिमा बहुत, सभी बटोरें अंक।
सब इसको हैं पूजते, राजा हो या रंक।। ४

अब धन से रुतबा बने, नहीं ज्ञान का मान।
पैसा जिसके पास है,उसका है सम्मान।। ५

जिसकी केवल कामना, पाएं धन भरपूर।
मर्यादा इंसानियत, उससे समझो दूर।। ६

लोभी मन में है भरा, केवल भोग विलास।
हर पल मन में सोचता,धन हो कैसे पास।। ७

धन को पाने के लिए, करे नीच सब कर्म।
लोभी में बचती नहीं, थोड़ी-सी भी शर्म।। ८

जमा बहुत धन को किया, बना रहा कंजूस।
निकल रहा है अंत में, उसका सारा जूस।। ९

अंधा है कानून भी,मिले नहीं जब आय।
बिना जुर्म फाँसी चढ़ा,धन से मिलता न्याय।। १0

केवल निर्मल भाव का,भूखा योगी संत।
जो धन का भूखा फिरे, होता नहीं महंत।११।

हो धन का लोभी अगर, ज्ञानी संत फकीर।
रहना उससे दूर ही, कहते दास कबीर।१२।

चाहे कितना भी बड़ा, होगा धन की खान।
अगर नहीं संतोंष है, सब धन धूल समान।१३।

पुण्य कर्म से ही मिले, सभी सुखद परिवेश।
धन से मिलता है नहीं, दुर्लभ प्रभु का देश।१४।

लोभी दुनिया में बहुत, नहीं धर्म ईमान।
धन के पीछे भागता, पागल-सा इंसान।१५।

खींच रहा अपनी तरफ़, धन का माया -जाल।
भूले से फँसना नहीं, बहुत बुरा हो हाल।१६।

जो रिश्तों को भूल कर, धन में जाते डूब।
रहे नहीं आनंद तब, गम भी पाते खूब।१७।

धन चंचल होता बहुत, बनो न इसके दास।
आज तुम्हारे पास है, कल दूजे के पास।१८।

धन की माया है अजब, सब बुनते हैं जाल।
छटपट करता है मनुज, मकड़ी जैसा हाल।१९।

होती है चारो तरफ़, धन की जय-जयकार।
मानव मन मस्तिष्क में, भरने लगा विकार।२०।

जिसके मन में है भरी, केवल धन की चाह।
मानवता भूला मनुज, है इतिहास गवाह ।२१।

धन सब कुछ होता नहीं, ऐ मानव नादान।
मिली अगर है ज़िन्दगी, इसकी कीमत जान।२२।

जिस धन को पाता मनुज, अपनी देह मरोड़।
अंत समय में सब मगर,गया यहीं पर छोड़।२३।

धन पर ऐ मानव सुनो, करो न इतना नाज़।
बड़े- बड़ों के टूटते, देखेंं हमने ताज।२४।

धन इतना ही चाहिए, हो जाये सब काज।
दीन -दुखी को दान दूँ, बची रहे बस लाज।२५।

जिसकी उल्टी खोपड़ी, बहुत बड़ा है दुष्ट।
धन चाहे जितना मिले, हुआ नहीं संतुष्ट।२६।

धन जिसका सबकुछ यहाँ, नहीं आत्म सम्मान।
बेच दिया है आत्मा, बचा नहीं ईमान।२७।

धन से ही दुनिया चले नाते-रिश्तेदार।
गरम जेब को देख कर, बनते दोस्त हजार।।२८

पैसे से पैसे बनें,पैसे धन का बीज।
बढ़ता सद्उपयोग से ,पैसा है वो चीज। २९।

पैसा बोले कुछ नहीं,, करे बोलती बंद।
पैसा जब सिर पर चढ़े, खो देता आनंद।। ३०

– लक्ष्मी सिंह
नई दिल्ली

Language: Hindi
235 Views
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