धन से बड़ा ध्यान।
धन से बड़ा ध्यान,
धनी व्यक्ति कभी प्रेम नहीं कर पाता क्योंकि वो मात्र शरीर को देखता है, बुद्धि के आंखों से कामना के आंखों से वही वह चूक जाता है, अगर वही प्रेम या ध्यान को आंख पर लाए तभी वो पूर्णतः विवेकशील इंसान होता है, बनता है नहीं ऐसा नहीं कहूंगा, बनना होना में फर्क साफ है, प्रेम चाहता है होना बस बुद्धि कामना चाहता है देह शरीर को लेकर चलता है, इसीलिए मन को नहीं पहचान पाता, उसे लगता है भगवान है ही सब कुछ क्षमा कर देंगे, ये सोच कर सुखी होते है, पूजा करते है प्राथना करते है, ताकि पाप मिट जाए, बाहर का पाप तो मिट जायेगा , लेकिन भीतर का क्या होगा साहब, भीतर तो ऐसा ही है बस थोड़ा छिप गया है, यहां जानने की आवश्कता है की कैसे शरीर मन बुद्धि हमसे ऐसा करवाता है, उसके लिए जागरूकता और ध्यान से विवेक का जन्म होगा,
विवेक में उतरने के बाद धीरे धीरे प्राथना प्रेम में परिवर्तन हो जायेगा, तभी आप स्वयं को जान सकते है,
कठिन मार्ग तो है लेकिन मिले न प्रभु, ऐसा मैं नहीं कह रहा है, परमात्मा है बस आंख खोलने की आवश्कता है। चारो तरफ भगवान का दर्शन हो सकता है, परमात्मा आपका लिए राह में खरे मिलेंगे, आप बस आंख खोलो, पूरा नहीं भय है तो थोड़ा खोलो, पर सुबह या जब समय मिले थोड़ा देर स्वयं में जाने के कष्ट करें।
धन्यवाद।
रविकेश झा।