*धन दौलत का झौला आगे खोलो ना*
धन दौलत का झौला आगे खोलो ना
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दर पर आया मँगता खाली मोड़ो ना।
धन दौलत का झौला आगे खोलो ना।
मसले जो भी हो घर के ही अंदर हों,
घर का तांडव बाहर जनता जोड़ो ना।
बनता – बनता कार्य पल में रुक जाता,
बढ़ते पग पथ पर जाते हों रोको ना।
अपनी चाहत मन में रख चुपके-चुपके,
मोरी से खोरी तक बातें बोलो ना।
जन की तीखी नजरों से बच निकलो,
औरों की शेखी देखो मन डोलो ना।
मनसीरत मन पागल दीवाना जाना,
पागलपन में विरही का रस घोलो ना।
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सुखविन्द्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैंथल)