“धन्य प्रीत की रीत..”
कहूँ कोरमा, कहुँ बिरयानी, कबहुँ ब्रोकली कल्ला,
कबहुँ रायता, झोल-कचौड़ी, कबहुँ चटपटे भल्ला।
लाईँ मटकति, एक शायरा, मचो गली मा हल्ला,
धन्य प्रीत की रीत, मोरि मुँह ठूँसि दियो रसगुल्ला।
डहुँकि घरैतिन आइ, “बँटत राशन, लै आवौ गल्ला,”
वैसेइ, गलो रुँधाइ, मोरि हालत पै, हँसत मोहल्ला।
प्रेम दिवानी गोरि, निशानी माँगति, चाँदी छल्ला,
सँकट “आशादास” घोर, अब झाड़ौँ केहि बिधि पल्ला..!