!! घनाक्षरी छंद !!
घनाक्षरी छंद
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सभी देशवासियों को, बुद्धि और विचार दे,
एक साथ रहें सभी, आपस में प्यार दे।
दुष्ट और पापी जो भी, घूमते समाज बीच,
ऐसे दुष्ट पापियों की, जिंदगी सवांर दे।
लेखनी निखार मेरी, कन्ठ में निवास कर,
सिर्फ तेरे गीत लिखूँ, वाणी में तू धार दे।
भारती की अस्मिता पे, डाले जो बुरी नज़र,
ऐसी नज़रों के शीश, धड़ से उतार दे।
दीपक “दीप” श्रीवास्तव