Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
29 Aug 2023 · 12 min read

*द लीला पैलेस, जयपुर में तीन दिन दो रात्रि प्रवास : 26, 27, 28 अगस्त 202

द लीला पैलेस, जयपुर में तीन दिन दो रात्रि प्रवास : 26, 27 ,28 अगस्त 2023
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍂🍂
#The_Leela_palace
#The_Leela_palace_Jaipur
राजस्थान अपनी राजसी आभा के लिए प्रसिद्ध है। उसमें भी जयपुर का तो एक विशिष्ट स्थान है। पैलेस शब्द का प्रयोग तो विभिन्न होटलों और संस्थानों के नाम के साथ होता रहता है, लेकिन पैलेस शब्द के साथ राजमहल की जो राजसी झलक होनी चाहिए; वह तो लीला पैलेस जयपुर में ही विद्यमान है।
ईश्वर की कृपा से द लीला पैलेस, जयपुर में 26 और 27 अगस्त की रात्रि को ठहरने का शुभ अवसर प्राप्त हुआ। लीला पैलेस स्वयं में एक अविस्मरणीय अनुभव है। जब हम लोग रामपुर (उत्तर प्रदेश) से कार द्वारा 26 अगस्त 2023 को दोपहर बाद जयपुर पहुॅंचे, तो दूर से ही सिल्वर शाइनिंग के गोल गुंबदों ने होटल की भव्यता के संबंध में हमारा मन मोह लिया। संपूर्ण होटल किसी व्हाइट हाउस की तरह जगमगा रहा था। सड़क पर बड़े-बड़े शब्दों में दि लीला पैलेस का बोर्ड था।

कार से उतरकर जब हम रिसेप्शन की ओर बढ़े तो रिसेप्शन के दरवाजे से पहले ही एक ओर संतूर वादक तथा दूसरी ओर तबला वादक झरोखों में बैठे हुए वादन कर रहे थे। प्रवेश द्वार से पूर्व ही हमारे स्वागत के लिए दो नर्तकियॉं नृत्य कर रही थीं। यह एक बड़ा खुला मैदान था, जिसके फर्श पर संगमरमर बिछा था । चारों कोनों में संगमरमर के चार बड़े हाथी अपनी सूॅंड में गेंदे के फूलों की मालाऍं लिए हुए मानों हमारे स्वागत की मुद्रा में तैयार थे। संतूर-वादक से जब हमने बाद में बात की, तो पता चला कि यह ढोलक भी बहुत अच्छी बजाते हैं। ढोलक बजाना इनका पुश्तैनी कार्य है। अब संगीत की एक नई विधा के रूप में आपने संतूर सीखा है और उसका प्रदर्शन आजकल कर रहे हैं । रिसेप्शन-कक्ष का दरवाजा दरबान ने खोलकर हम लोगों को प्रवेश कराया । दरवाजा स्वयं में शाही कारीगरी को दर्शाता था। दरवाजे के भीतर हाथ में फूलों की थाली लिए हुए कुछ परिचारिकाऍं थीं। मोहक मुस्कान सबके मुख-मंडल पर विराजमान थी। रिसेप्शन-कक्ष के बीचोंबीच संगमरमर का फव्वारा आकर्षण का मुख्य केंद्र था। इसी के चारों तरफ अतिथियों के स्वागत के लिए कुर्सियों और सोफों के इंतजाम अलग-अलग कुछ समूहों में कई स्थानों पर किए गए थे। सुगंधित फूलों के बेहतरीन गुलदस्ते अपनी खुशबू से रिसेप्शन-कक्ष को महका रहे थे। सबसे ज्यादा आकर्षण उन दो कुर्सियों का था, जिन पर बैठकर पैरों को चौकी पर रखा जाता था। चौकियों पर भी शनील मॅंढ़ा हुआ था । इसमें शाही पुट था। एक कुर्सी पर मैं तथा दूसरी कुर्सी पर मेरी पत्नी श्रीमती मंजुल रानी बैठीं । क्षण भर के लिए हमें यही एहसास हुआ कि हम चालीस वर्ष पुरानी अपनी वैवाहिक जयमाल के कार्यक्रम में उपस्थित हुए हैं। रिसेप्शन-कक्ष में मुख्य कार्य तो अपना नाम-पता लिख कर कमरे की चाबी लेना होता है , लेकिन यहॉं इस यंत्रवत कार्य से बढ़कर अतिथियों को जो आतिथ्य मिला और उनको फुर्सत के कुछ क्षण अत्यंत आत्मीय अभिनंदन के प्राप्त हुए; वह लीला पैलेस जयपुर की एक मुख्य विशेषता कही जा सकती है ।

रिसेप्शन कक्ष से कमरे तक ले जाने के लिए छह सीटर बैटरी से चलने वाली ‘बग्घी’ मौजूद थी। सामान अलग से पहुंच गया। हम लोग ‘बग्घी’ में बैठकर अपने कमरे तक गए। रास्ते में भी दूसरी बग्घियॉं चलती-फिरती नजर आ रही थीं । उन पर भी होटल के यात्री बैठे हुए थे। लीला पैलेस जयपुर में यात्रियों के ठहरने के लिए अलग-अलग ‘विला’ बने हुए हैं। यह समझ लीजिए कि एक कॉलोनी है, जिसमें बहुत से मकान अर्थात विला बने हुए हैं। सभी विला एक जैसे नहीं है। सब में सुविधाऍं भी अलग-अलग हैं। हमारे विला में चार कमरे थे। एक कमरे में मैं और मेरी पत्नी तथा बाकी दो कमरों में दोनों बेटे-बहुऍं ठहरे। लीला पैलेस में यात्रियों के ठहरने के लिए विला इस प्रकार से बने हुए हैं कि विला के आगे इतनी चौड़ी मुख्य सड़क है कि उसमें से दो बग्घियॉं आसानी से निकल सकती हैं तथा पैदल चलने वालों को उसके बाद भी सुविधाजनक स्थान मिल जाता है।
विलाओं के सामने थोड़ी ऊॅंची एक दीवार है, जिस पर सुंदर मोर की आकृति की चित्रकारी थोड़ी-थोड़ी दूर पर मन मोहने वाली है। कुछ न कुछ आकर्षण हर कदम पर दीवार पर देखने को मिलेगा और जिसे देखकर मन मंत्रमुग्ध हो जाएगा। विभिन्न विलाओं के आगे की सड़क चौकोर उभरी काली टाइल की बनी हुई थी, जिस पर पैदल टहलना बढ़िया लग रहा था। इन टाइलों की बनावट कुछ ऐसी है कि पैर फिसलने का खतरा नहीं रहता। जिस सड़क से भी गुजरो, लोग मस्ती में टहलते हुए दिख जाते थे। हमारे विला अथवा कहिए कि रूम के पास में ही स्विमिंग-पूल, भोजन कक्ष आदि थे । कमरे से निकलकर सड़क पर टहलते हुए सुबह के नाश्ते और रात के खाने के लिए भोजन-कक्ष में पैदल टहलते हुए पहुॅंचना अच्छा लग रहा था । शुरू में तो हम दोनों को किसी कर्मचारी से पूछ कर जाना पड़ा, लेकिन बाद में रास्ते रट गए। सुंदर फूल-पौधे और हरियाली चारों तरफ थी।

स्विमिंग-पूल से लगा हुआ भोजन-कक्ष था, जहां पर कक्ष के भीतर अलग-अलग मेजों पर बैठकर भोजन करने की व्यवस्था थी। यात्री चाहें तो भोजन कक्ष के बाहर खुले चबूतरे पर मेज-कुर्सियों पर बैठकर भी भोजन किया जा सकता है। हमने भोजन कक्ष के अंदर और बाहर दोनों स्थानों पर सुबह के नाश्ते का आनंद लिया।

पहले दिन तो नहीं लेकिन दूसरे दिन भोजन कक्ष के बाहर जहॉं लोग मेज कुर्सियों पर नाश्ता कर रहे थे, उसी के बीचो-बीच जहॉं संगमरमर के दो मोर पानी के एक फव्वारे की शोभा को दुर्गुणित कर रहे थे; उसी के बगल में हमने देखा कि मेज कुर्सी डालकर एक ज्योतिषी विराजमान हैं । उनकी टेबल पर भविष्यवक्ता/ हस्तरेखा विशेषज्ञ एवं वास्तुविद लिखा हुआ था। एक सज्जन दंपत्ति काफी देर तक उनसे परामर्श करते रहे।

भोजन कक्ष का बाहरी हिस्सा स्विमिंग पूल से जुड़ा हुआ था अर्थात यहां बैठकर स्विमिंग पूल की गतिविधियों को निहारते हुए भोजन और नाश्ता किया जा सकता था। भोजन और नाश्ते में विशेषता यह थी कि पॉंच-छह तरह के फल सुंदरता के साथ कटे हुए प्लेटों में अवश्य उपलब्ध रहते थे । बड़ा गोल भूरा अंगूर, तरबूज, खरबूजा, पपीता, अनन्नास (पाइनएप्पल) तथा और भी बहुत कुछ। चार तरह की आइसक्रीम हर समय उपलब्ध थीं । जितनी चाहे डिब्बों से निकाल कर भोजनकर्ता खाने के लिए स्वतंत्र था। बुफे सिस्टम था। दस-बारह तरह की मिठाइयां तथा इतने ही तरह के बिस्कुट केक आदि उपलब्ध रहते थे।
प्याज की कचौड़ी जयपुर का मशहूर आइटम है। लेकिन प्याज न खाने के कारण हम उसके स्वाद से वंचित रह गए। डोसा बहुत स्वादिष्ट था, जिसे दक्षिण भारतीय कारीगर बना रहे थे। यह उनकी बातचीत-बोली से पता चल रहा था। हमने काउंटर पर जाकर निवेदन किया -“एक डोसा चाहिए ?” उत्तर में प्रश्न निहित था “कौन सा डोसा बनाया जाए ?” हमने कहा “जिसमें प्याज नहीं हो!” डोसा प्रशासक ने जो डोसे के इंतजाम के लिए वहां नियुक्त थे , हमें राय दी -“तब तो आप प्लेन डोसा ही लीजिए।” हमसे टेबल नंबर पूछा और नोट करके कहा कि आपकी टेबल पर पहुंच जाएगा। इस बीच हमने पूरी और आलू की पतली सब्जी और पोहा एक प्लेट में लेकर खाना आरंभ कर दिया। जितना समय लगने का हमें अनुमान था, डोसा उतनी ही देर में हमारे पास पहुंच गया।
प्लेटों और कटोरियों के लिए होटल में ‘ब्लू पॉटरी’ का प्रयोग किया जा रहा था। ब्लू पॉटरी का तात्पर्य कांच की उन प्लेटों से है, जिन पर नीले रंग की सुंदर चित्रकारी की गई होती है। चिकनी और चमकदार प्लेटें- कटोरियॉं अपनी नीली आभा की छटा कुछ अलग ही बिखेरती हैं। डोसे की प्लेट में एक कटोरी सांभर तथा तीन प्रकार की चटनियों के साथ प्लेन डोसा विराजमान था। डोसे का आकार इतना बढ़िया था कि एक इंच भी यह प्लेट से बाहर नहीं निकल रहा था। अन्यथा आमतौर पर तो लंबे-लंबे डोसे बनाए जाते हैं, जिनको स्टॉल से मेज तक ले जाने में भी हटो-बचो मची रहती है। मुझे डोसे का आकार बहुत अच्छा लगा। एक दिन चावल की स्वादिष्ट खीर बनी थी। बिल्कुल घर जैसी।

शाम को चाय का इंतजाम एक खुले मैदान में हुआ। रिसेप्शन कक्ष, स्विमिंग पूल, शाम का चाय स्थल, भोजन कक्ष, यात्रियों के ठहरने के कमरे, विला -यह सब पैदल के रास्ते हैं, जो आपस में बहुत सुंदर रीति से इस प्रकार संबंधित किए गए हैं कि एक स्थान से दूसरे स्थान तक जाना, ठहरना और समय बिताना एक आनंददायक अनुभव बन जाता है।

शाम की चाय लीला पैलेस में सिर्फ चाय नहीं है। यह मनोरंजन और फुर्सत से कुछ समय बिताने का एक विश्रामगृह भी कहा जा सकता है । चाय के साथ में दो-चार तरह का पकौड़े, चार-छह तरह के बिस्कुट के इंतजाम के साथ-साथ मंच पर संगीत की स्वर-लहरी बिखेरने के लिए राजस्थानी वेशभूषा में संगीतकार तबला और अन्य वाद्य-यंत्र बजाते हुए यात्रियों का मन बहलाने के लिए यद्यपि पर्याप्त थे, लेकिन होटल प्रशासन ने यात्रियों के आकर्षण को बढ़ाने के लिए एक कठपुतली-शो भी इस स्थान पर आयोजित किया हुआ था। इधर नृत्य और संगीत चल रहा था, उधर कठपुतली-शो भी चल रहा था । उसी के बराबर में एक कारीगर अपना स्टॉल लगाए हुए बैठा था। लाख का कंगन बनाने में वह एक्सपर्ट था। उसकी गर्म भट्टी चालू थी। जिस नाप का चाहें, उस नाप का कंगन वह पॉंच मिनट में बनाकर तैयार कर देता था। हमारी धर्मपत्नी श्रीमती मंजुल रानी ने भी उससे एक कंगन लाख का बनवाया।

एक भविष्यवक्ता तोता विराजमान था। तोता पिंजरे में था। उसके बारे में बताया गया कि यह व्यक्ति का भविष्य बता देता है। हम मूॅंढ़े पर बैठे । इसके बाद तोता पिंजरे से बाहर आया। बाहर मेज पर दस-बारह कार्ड रखे हुए थे । तोते ने एक कार्ड अपनी चोंच से उठाया। ‘भविष्यवक्ता तोते’ के सहायक के रूप में विराजमान एक सज्जन ने उस कार्ड को तोते की चोंच से अपने हाथ में लिया। तोता पुनः अपने पिंजरे में वापस लौट गया। भविष्यवक्ता सहायक महोदय ने उस कार्ड को पढ़कर हमारे बारे में कुछ सामान्य चर्चाएं कीं। इससे हमें यह स्पष्ट हो गया कि तोते के साथ जो सज्जन बैठे हुए हैं, वह चेहरा पढ़ने की कला में पारंगत हैं और व्यक्ति का आकलन करते हुए उसका स्वभाव बता सकते में समर्थ हैं।

लीला पैलेस में एक छोटा किंतु सुंदर मंदिर भी है। इसमें सिंह पर सवार दुर्गा जी की मूर्ति है। हम लोग मंदिर में भी दर्शन के लिए गए। पुजारी जी ने बताया कि सबसे पहले होटल में मंदिर का निर्माण हुआ था। बाकी सब कुछ उसके बाद निर्मित हुआ।

संगमरमर का खूब प्रयोग लीला पैलेस के निर्माण में किया गया है। सजावटी सामानों में भी यह प्रचुरता से प्रयोग में लाया गया है। जिन कमरों में हम लोग ठहरे थे, वहां की मेज पर सेब, नाशपाती और आलू-बुखारा तो उच्च कोटि का था ही लेकिन उसे रखने वाली जो नौकाकार ट्रे थी, वह भी संगमरमर की बनी हुई थी। प्रत्येक विला के प्रवेश द्वार पर संगमरमर की कुछ नक्काशीदार कलाकृतियॉं इनकी शोभा को बढ़ाने के लिए अवश्य रखी गई थीं । कमरों में नहाने का टब संगमरमर का बना हुआ था। स्नानगृह में बैठने का स्टूल भी संगमरमर का था। राजमहलों में संगमरमर का उपयोग हमेशा से होता चला आया है। लीला पैलेस में उसकी झलक सहज ही सर्वत्र देखी जा सकती है।

लीला पैलेस की सबसे बड़ी विशेषता यहॉं के कर्मचारियों का अनुशासन और परिसर को साफ-सुथरा बनाए रखने में उनकी रुचि तथा यात्रियों की आवश्यकताओं को चुटकी बजाते ही पूरा करने की दक्षता कही जा सकती है। हमें जिस काम के लिए किसी से कुछ कहने की जरूरत पड़ी, उस काम को पूरा होने में जरा-सी भी देर नहीं लगी। कुछ परिचारिकाऍं तो इतना आत्मीय भाव लिए हुए थीं कि हमारी एक वर्ष से कम आयु की दो पोतियॉं भोजन कक्ष के बाहर उनकी गोद में दो-दो मिनट तक खेलती रहती थीं। इन सब से यह सिद्ध होता है कि लीला पैलेस का प्रशासन और यात्री परस्पर परिवार के रूप में इस परिसर में अपना समय बिताते हैं। किसी भी संस्थान की यही सबसे बड़ी विशेषता कही जा सकती है।
🍃🍃🍃
चोखी ढाणी

जयपुर का एक दर्शनीय स्थल चोखी ढाणी है। इसे बहुधा ‘चौकी धानी’ कहा जाता है। लीला पैलेस से हम लोगों ने ‘चोखी ढाणी’ जाने का कार्यक्रम बनाया। शाम के कुछ घंटे चोखी ढाणी पर बिताना गांव के वातावरण में कुछ क्षण बिताने के समान रहा। जिन बैलगाड़ियों और तॉंगों को लोग भूल चुके हैं, वह ‘चोखी ढाणी’ पर सजीव रूप से चलते-फिरते नजर आए। उन पर बैठकर लोग सवारी कर रहे थे। ऊॅंट पर बैठकर भी सवारी करने का एक अलग ही आनंद वहां मिला।
गांव की धूल-मिट्टी तो नहीं, लेकिन हां ! उसका कुछ आभास कराने के लिए खुले मैदान में रेत बिछी हुई थी। मद्धिम रोशनी की व्यवस्था थी। पेड़ों की शाखों पर लालटेन लटकी हुई थीं,जिनके भीतर बिजली के पीली रोशनी देने वाले बल्ब जल रहे थे।
भाषा पूरी तरह राजस्थानी ग्रामीण परिवेश को प्रतिबिंबित कर रही थी। ‘पानी पतासी’ शब्द का प्रयोग उस व्यंजन के लिए किया गया जो पानी के बताशे, गोलगप्पे या पानीपूरी के लिए प्रयोग में लाया जाता है। एक स्थान पर पुरुषों के लिए ‘मुटियारा’ और महिलाओं के लिए ‘लुगाइयॉं’ शब्द का प्रयोग रोचक लगा। ‘चंपी मालिश’ भी पुराने समय से चल रहा शब्द-प्रयोग है, जो चोखी ढाणी में देखने में आया। चुस्की वाला बर्फ भी एक अच्छा नाम था, जिसका स्वाद अभी भी भला किसको आकृष्ट नहीं करेगा? बहती हुई नदी में नाव पर बैठने का आनंद हम लोगों ने भी लिया। यह भी एक ग्रामीण परिवेश की स्थिति को दर्शाने वाला कार्यक्रम था। सिर पर घड़े रखकर उस में आग जलाते हुए नृत्य करती महिलाओं की कला भी मनमोहक थी। भोजन में राजस्थानी परंपरागत थाल में सजी हुई आठ-दस प्रकार की सब्जियों को चखना एक नया अनुभव ही कहा जाएगा।

‘ढाणी’ शब्द स्वयं में राजस्थानी ग्रामीण अंचल का शब्द है । खेतों के पास रखवाली करने के लिए जो झोपड़ियां बनाकर लोग प्राचीन काल से रहते चले आ रहे हैं, उन घरों के समूह की सुंदरता और मनमोहकता को दर्शाने के लिए ‘चोखी ढाणी’ मनोरंजन स्थल बिल्कुल सटीक नामकरण है। दर्शकों के मनोरंजन के लिए नृत्य-संगीत के कुछ कार्यक्रम भी चोखी ढाणी पर आयोजित होते हुए हमने देखे। राष्ट्रीय संग्रहालय में महाराष्ट्र, गोवा, तमिलनाडु आदि की झांकियां संक्षिप्त ही सही लेकिन परिवेश से परिचित कराने में लाभदायक हैं । ‘सींक वाली कुल्फी’ केवल ग्रामीण परिवेश की ही वस्तु नहीं है, शहरों में भी यह खूब पसंद की जाती है। चोखी ढाणी के आंतरिक मार्गों पर हाथी भी हमने घूमते हुए पाए। बच्चे और बड़े सबके लिए चोखी ढाणी ग्रामीण परिवेश को समझने और गांव में घूमने की दृष्टि से एक अच्छा कृत्रिम मनोरंजन स्थल है ।
🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍃🍂
हवामहल, जलमहल, आमेर का दुर्ग और जयपुर के पुराने बाजार

सड़क पर चलते-चलते हमने ‘आमेर का दुर्ग’ कार में बैठे-बैठे देखा। ‘हवामहल’ सड़क के बिल्कुल किनारे हैं, जहां कुछ देर रुक कर हम लोगों ने फोटो खिंचवाया। ‘जलमहल’ भी सड़क के बिल्कुल किनारे है। जल के मध्य में महल होने के कारण ‘जल महल’ कहलाता है। इसके भीतर जाने के लिए नाव की कोई व्यवस्था नजर नहीं आई । पूछने पर पता चला कि काफी समय से पर्यटकों के लिए जलमहल में जाना बंद चल रहा है।
जयपुर के परंपरागत प्राचीन बाजारों में कई विशेषताएं देखने में आईं । सड़कों पर से गुजरते हुए हमने पाया कि पूरे बाजार की बनावट एक जैसी है। सब गुलाबी रंग में रॅंगे हुए हैं। बाजार की सभी दुकानों की आगे से चौड़ाई भी समान है। जो स्थान दुकान का नाम लिखने के लिए निर्धारित किया गया है, उसकी लंबाई-चौड़ाई भी एक समान है। नाम-पट्टिका सफेद रंग से पुती हुई है तथा उस पर काले रंग के पेंट से दुकान का नाम लिखा गया है। सब दुकानों पर हिंदी में नाम लिखा देखकर अच्छा लगा। बाजारों तथा दुकानों की एकरूपता उनके नामकरण तथा बनावट की दृष्टि से आकृष्ट करती है । संभवतः रियासत काल में इस प्रकार की योजना अमल में लाने के कारण ही जयपुर के पुराने बाजार एक अद्वितीय चमक लिए हुए हैं और जयपुर को ‘गुलाबी शहर’ बनाते हैं। यह भी सुखद है कि अपने शहर को ‘गुलाबी शहर’ का नाम देने में दुकानदारों का भी अभूतपूर्व आत्मिक सहयोग रहा है।
🍃🍃🍃🍂
रक्षाबंधन

जयपुर-यात्रा का एक सबसे बड़ा लाभ यह हुआ कि कई वर्ष बाद गुड्डी जीजी (अनीता जीजी) और शिव कुमार अग्रवाल जीजा जी से उनके घर पर जाकर मिलने का अवसर प्राप्त हो गया। रक्षाबंधन पर रामपुर में आई हुई राखियों को मैं अपने साथ जयपुर ले गया था। इन्हें गुड्डी जीजी ने मेरे तथा दोनों सुपुत्रों डॉक्टर रघु प्रकाश और डॉक्टर रजत प्रकाश के हाथ में बॉंध दीं। चारों पोते-पोतियों को भी उनके द्वारा टीका लगाया गया। यह जयपुर यात्रा का सर्वाधिक उज्जवल पक्ष रहा। उनकी दोनों बेटियों मेघा और नेहा से भी मिलना हुआ। धेवती याद्वी अग्रवाल से मुलाकात हुई। चौदह साल की उम्र में उसने ‘राग यमन’ पर जो सितार-वादन हम लोगों के सामने प्रस्तुत किया, उसे देखकर याद्वी की प्रतिभा पर आश्चर्य भी हुआ और सुखद अनुभूति भी हुई। जयपुर संगीत और कला का गढ़ है। यहॉं के वातावरण में गुण सचमुच भरे पड़े हैं।
➖➖➖➖➖➖➖➖
लेखक : रवि प्रकाश
बाजार सर्राफा, रामपुर, उत्तर प्रदेश
मोबाइल 9997615451

164 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Ravi Prakash
View all
You may also like:
तिलिस्म
तिलिस्म
Dr. Rajeev Jain
भानू भी करता है नित नई शुरुवात,
भानू भी करता है नित नई शुरुवात,
पूर्वार्थ
तू उनको पत्थरों से मार डालती है जो तेरे पास भेजे जाते हैं...
तू उनको पत्थरों से मार डालती है जो तेरे पास भेजे जाते हैं...
parvez khan
मौलिक विचार
मौलिक विचार
डॉ.एल. सी. जैदिया 'जैदि'
अपनी तस्वीर
अपनी तस्वीर
Dr fauzia Naseem shad
“बधाई और शुभकामना”
“बधाई और शुभकामना”
DrLakshman Jha Parimal
পছন্দের ঘাটশিলা স্টেশন
পছন্দের ঘাটশিলা স্টেশন
Arghyadeep Chakraborty
दोहा ग़ज़ल
दोहा ग़ज़ल
Mahendra Narayan
कुछ लोगों का प्यार जिस्म की जरुरत से कहीं ऊपर होता है...!!
कुछ लोगों का प्यार जिस्म की जरुरत से कहीं ऊपर होता है...!!
Ravi Betulwala
**आजकल के रिश्ते*
**आजकल के रिश्ते*
Harminder Kaur
#शीर्षक;-ले लो निज अंक मॉं
#शीर्षक;-ले लो निज अंक मॉं
Pratibha Pandey
ରାତ୍ରିର ବିଳାପ
ରାତ୍ରିର ବିଳାପ
Bidyadhar Mantry
दोस्त, दोस्त तब तक रहता है
दोस्त, दोस्त तब तक रहता है
Ajit Kumar "Karn"
शीर्षक तेरी रुप
शीर्षक तेरी रुप
Neeraj Agarwal
सोचते होंगे तुम
सोचते होंगे तुम
Dheerja Sharma
परिभाषा संसार की,
परिभाषा संसार की,
sushil sarna
बाण मां सूं अरदास
बाण मां सूं अरदास
जितेन्द्र गहलोत धुम्बड़िया
क्षणिकाए - व्यंग्य
क्षणिकाए - व्यंग्य
Sandeep Pande
"गौरतलब"
Dr. Kishan tandon kranti
सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
सब्र रखो सच्च है क्या तुम जान जाओगे
VINOD CHAUHAN
जिंदगी जीने का कुछ ऐसा अंदाज रक्खो !!
जिंदगी जीने का कुछ ऐसा अंदाज रक्खो !!
शेखर सिंह
जो दिखाते हैं हम वो जताते नहीं
जो दिखाते हैं हम वो जताते नहीं
Shweta Soni
*आया भैया दूज का, पावन यह त्यौहार (कुंडलिया)*
*आया भैया दूज का, पावन यह त्यौहार (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
देश हमारी आन बान हो, देश हमारी शान रहे।
देश हमारी आन बान हो, देश हमारी शान रहे।
सत्य कुमार प्रेमी
3301.⚘ *पूर्णिका* ⚘
3301.⚘ *पूर्णिका* ⚘
Dr.Khedu Bharti
गौतम बुद्ध के विचार --
गौतम बुद्ध के विचार --
Seema Garg
वक्त के साथ लड़कों से धीरे धीरे छूटता गया,
वक्त के साथ लड़कों से धीरे धीरे छूटता गया,
ब्रजनंदन कुमार 'विमल'
जब तक हम ख़ुद के लिए नहीं लड़ सकते हैं
जब तक हम ख़ुद के लिए नहीं लड़ सकते हैं
Sonam Puneet Dubey
..
..
*प्रणय*
क्या कभी तुमने कहा
क्या कभी तुमने कहा
gurudeenverma198
Loading...