“द्वेष भाव सब तजें”
द्वेष भाव सब तजें,
नेक राह सब चले,
किसी से भी सदैव ही,
व्यंग्य बात यूँ कहें,
उसे वहीं नष्ट करें,
विचिंत्य ही बोलते,
मनद्वार खोलकर,
बुद्धि के प्रभाव को,
आत्मता से जोड़कर,
दृश्य शान से भरे,
सदैव देखते रहें,
योग्यता परख परख,
विचार को पेरकर
त्याग की अग्नि में,
स्वर वायु प्रयोग कर,
अग्नि को वृध्दि दें
स्वरों की मन्द चाल में,
स्वकदम सम्भाल लें,
सुख दुःख वियोग का,
दीप आत्मज्ञान के,
परोपकार से जलें,
शान्ति का तेल दें,
बाती क्रान्ति की रखें,
वीरता खड़ग लिए,
लकीर चिन्ता की कभी,
न स्वयं के भाल हो,
लक्ष्य क्यों न पास हो,
जब, द्वेष भाव सब तजें।
©अभिषेक पाराशर????