द्वीटा मुक्तक देखू
द्वीटा मुक्तक देखू
बहि रहल आँखि सँ देखू झरना।
हाल कहू नै कोना छी सजना?
शीत पसरल य रौदि रुसल य!
हम निपै छी नोर सँ अंगना।
हाल बुझै छी हम तोहर सजनी।
अपने मन सँ गेलेँ नैहर सजनी।
देख पुलकित य मौसमक ममहर।
शीत पसरल य हृदय तर सजनी।
दीपक झा “रुद्रा”