द्वार पर दीप जलाये बैठी हूँ —आर के रस्तोगी
द्वार पर दीप जलाये बैठी हूँ |
मन के मीत को छिपाये बैठी हूँ ||
कर रही हूँ प्रतीक्षा बड़ी देर से |
राहो में पलके बिछाये बैठी हूँ ||
तुम्हे मिस करना रोज की बात है |
याद करना मेरी आदत की बात है ||
तुमसे दूर रहना किस्मत की बात है ||
तुम्हे भूलना बस के बाहर की बात है ||
तुम्हे दिल को देकर मै बैठी हूँ |
तुम्हारे लिये तो सज कर बैठी हूँ ||
ले आओ बरात मेरे घर सजना |
डोली में बैठने को तैयार बैठी हूँ ||
आर के रस्तोगी