द्रौपदी पूछती है तुमसे
महाराज धृतराष्ट्र के दरबार में जब चौसर खेल के उपरांत द्रौपदी का चीर हरण होता है, उस समय द्रौपदी क्या – क्या पूछती और कहती है ? इसी पर मेरी ये कविता है ||
दुर्योधन के आदेश मात्र से तुम यहाँ आए हुए हो
और उसका आदेश मुझको तुम यहाँ पे सुना रहे हो |
किंतु एक बार मुझको देखो, मैं अभी रजस्वला स्त्री हूँ
मुझे वहाँ ना ले चलो तुम, मैं इस वंश की कुलवधु हूँ ||
दुःशासन मुझे घसीट कर भरी सभा ले जा रहे हो
अपने कुल की मर्यादा को खुद ही माटी में तुम मिला रहे हो |
सभासदों ने मेरा परिचय पूछा तो तुम उनको क्या परिचय दोगे
और राह में अगर बड़ी माँ मिलीं तो उनसे फिर तुम क्या कहोगे ||
मैं द्रुपद की पुत्री औ बहन धृष्टद्युम्न की हूँ
पांडवों की पत्नी हूँ और कुलवधु कुरूवंश की हूँ |
अग्निकुण्ड से जन्मी हूँ और अग्नि का वरदान हूँ
मैं यहाँ धर्मराज के लिए बस वस्तु का पर्याय हूँ ||
मैं रजस्वला हूँ केवल एक वस्त्र में लिपटी हुई हूँ
फिर भी दुःशासन के द्वारा घसीट कर लाई गई हूँ |
पुत्रवधु हूँ मैं महाराज की, फिर भी मेरा अनादर हो रहा
महाराज की इस पुत्रमोह से ये समाज लज्जित हो रहा ||
क्यूँ यहाँ पे बैठे सारे मौन धारण कर लिए हैं
इन अधर्मी के बीच में क्या धर्म पूरे मिट चुके हैं |
धर्मराज बैठे हैं फिर भी अधर्म यहाँ पे हो रहे हैं
इसका मतलब ये हुआ कि ये भी अधर्मी हो लिए हैं ||
नजर चुराने से क्या होगा पितामह मैं आपके पौत्र की वधु हूँ
आपको मेरा प्रणाम मैं द्रौपदी अपकी कुलवधु हूँ |
अब आप कहिए आप मुझको आशीर्वाद में अभी क्या कहेंगे
या फिर इसी तरह सिर झुकाए मूँह से यूं ही मौन रहेंगे ?
क्या सिर्फ आपने कुरूसिंहासन की रक्षा का संकल्प लिया है
क्या आपके लिए कुरू – मर्यादा का कोई महत्व नहीं है?
आप जैसे महापुरुष – शूरवीर यूं अपना मुख छिपा रहे हैं
और आप लोग कुरूवंश पे अमिट कलंक लगा रहे हैं ||
क्या इस वंश की ऐसी ही परंपरा चलती आ रही है?
जो आप जैसे महापुरुष के मुख को मौन कर रही है |
या फिर केवल मैं ही हूँ इस कुल की अभागन कुलवधु
और ऐसा इस वंश में सिर्फ मेरे संग ही हो रही है ||
आप जब पहली बार मिले थे सौभाग्यवती का आशीर्वाद दिया था
आज उस आशीर्वाद का अपनी आँखों से दशा देखिए |
आपके समक्ष आपका वंश कलंकित हो रहा है
अपने इन चक्षु से अपने वंश की दुर्दशा देखिए ||
हे पितामह ! मैं आपसे ये एक आशा कर रही हूँ
कि आप यहाँ होने वाले इस महापाप को रोक देंगे |
वरना, मेरे साथ यहाँ पे अगर कोई अप्रिय घटना घटित होगा
तो पितामह उसके जिम्मेदार इनके संग संग आप भी होंगे ||
यहाँ पे हो रहे इस अधर्म को आप चुपचाप सह रहे हैं
इसका मतलब आप भी इसके भागीदार बन रहे हैं |
अगर नहीं तो उठाइए धनुष और काट दीजिए उस जिह्वा को
जो इस भरी सभा में आपके कुलवधु को दासी कह रहे हैं ||
आप तो हैं शास्त्रज्ञानी तो आप मुझे ये बताइए
कि कौन किसको लगा सकता है दाँव पर जरा मुझको ये बताइए |
कि जो स्वयं को हार चुका है पहले से ही इस जुए में
वो कौन होता है दाँव पे लगाने वाला मुझको ये बताइए ||
इस प्रश्न का उत्तर आपसे यह नारी समाज माँग रही है
किंतु आपका मस्तक नीचे और मुख मौन हो गई है |
हे पितामह यह मौन मेरे प्रश्नों का उत्तर नहीं है
आपकी ये कुलवधु द्रौपदी आपसे इस प्रश्न का उत्तर चाह रही है ||
हे पितामह यहाँ उपस्थित कोई मुझे पुत्री कह सकता नहीं है
क्योंकि कोई अपनी पुत्री का ऐसा अपमान सह सकता नहीं है |
मुझे अपमानित करने वाले पाप की छाया में बैठे हुए हैं
हे पितामह आप मुझको फिर किस मुख से पुत्री कह रहे हैं ?
हे ज्येष्ठ पिताश्री आपको इस अभागन द्रौपदी का प्रणाम है
यहाँ आपके कुलवधु का हो रहा अपमान है |
इस सभा में इसी वंश की इज्जत हो रहा नीलाम है
भरत का यह वंश अब यहाँ हो रहा बदनाम है ||
ज्येष्ठ पिताश्री इतना सबकुछ आपके सम्मुख हो रहा है
किंतु आपने भी अपने को मौन धारण कर लिया है |
आपके इस मौन से हमें ऐसा प्रतीत हो रहा है
कि आपने भी कुरूवंश कलंकित करने का अघोर निर्णय कर लिया है ||
हे ज्येष्ठ पिताश्री आप तो जन्म से ही अंधे हुए हैं
किंतु पुत्र – मोह में एक बार फिर से आप अंधे हुए हैं |
अपने पुत्रों के इस कुकृत्य से आप नहीं शर्मिंदा हुए हैं
हे ज्येष्ठ पिताश्री एक बार फिर से आज आप अंधे हुए हैं ||
आप नेत्रहीन तो थे ही किंतु आज बुद्धिहीन भी हो चुके हैं
जो अपने ही वंश को अपनी सभा में बदनाम होने दे रहे हैं |
ऐसी अप्रिय घटना ना कभी पहले घटी थी ना कभी भी घटित होगा
हे ज्येष्ठ पिताश्री जैसा आपके इस सभा में हो रहे हैं ||
आज अगर आप इस कुकृत्य को रोकने का साहस ना किया तो
युगों – युगों तक इस जग को आप पर धिक्कार होगा |
इस वंश की इज्जत है अभी पूरे भारतवर्ष में
किंतु आपके कारण एक दिन इस वंश पर धिक्कार होगा ||
हे ज्येष्ठ पिताश्री क्षमा करना मुझको मैं बहुत कुछ बोल रही थी
क्यूँकि अपनी वेदना के कारण मैं आपको भूल गई थी |
आप तो हैं पत्थर आपको कहना सब निष्काम है
हे ज्येष्ठ पिताश्री आपको इस द्रौपदी का एक बार पुनः प्रणाम है ||
हे गुरू द्रोण आपने मुझे तात विदुर द्वारा एक संदेश भिजवाया था
और अपने संग मेरा दो – दो रिश्ता बतलाया था |
इक पुत्री का एक वधू का नाता आपने गिनवाया था
ऐसा तात विदुर ने उस दिन मुझको बतलाया था ||
किस ओर से प्रणाम करूँ आपको आज हे गुरुवर ये आप ही कहिए
पुत्री बनकर वधू बनकर या गुरू मानकर आप ही कहिए |
हे गुरुवर हे तात द्रोण आपको मेरा प्रणाम है
अब क्या देंगे आशीष मुझको हे तात गुरुवर आप कहिए ||
हे गुरूवर ये सारे भाई आपके ही तो शिष्य हुए
आपने इनको इतने दिन तक कौन – कौन से ज्ञान दिए ?
क्या उन ज्ञानों में आपने इनको ऐसा भी कोई ज्ञान दिया
जो आज ये अपने कुल की मर्यादा को भी भूल गए ||
आपका एक शिष्य पत्नी को सामान समझता है
वस्तु समझकर पत्नी को वो जूए में दाँव लगाता है |
उसके बाकी भाई भी उसको समर्थन देते हैं
यहाँ पे उसको रोकने का कोई साहस नहीं जुटाता है ||
एक तरफ ये पाण्डव अपनी पत्नी को वस्तु समझते हैं
दूजे तरफ ये कौरव अपनी भाभी को दासी कहते हैं |
इस सबको रोकने का प्रयत्न तक नहीं किया आपने गुरूवर
इसका मतलब यही हुआ कि आपके गुरुकुल में यही सिखाया जाता है ||
हे तात गुरुवर आपने भी मुख को मौन कर रखा है
अर्थात आपने भी खुद को अधर्मी के संग कर रखा है |
अब लगता है आपको भी कहना सब निष्काम है
हे तात गुरुवर आपको भी मेरा पुनः प्रणाम है ||
हे मेरे बालसखा केशव हे मेरे बालसखा माधव
अब तुम से ही है आस मुझे तुम भी ना करना निराश मुझे |
तुम यहाँ नहीं हो मालूम है पर आओगे है यकीन मुझे
अपनी बालसखा की लाज बचाने आओगे तुम अवश्य यहाँ
तुम पे है इतना यकीन मुझे तुम पे है इतना यकीन मुझे ||
यहाँ पे कौरव कर रहे दु:साहस तुम उनको रोकोगे अवश्य
ये पांडव किए हैं पाप बड़े तुम उनको टोकोगे अवश्य |
यहाँ पे हैं कुरूवंशी और सभासद सारे बन कायर देख रहे
तुम आओगे है यकीन मुझे और उन्हें धिक्कारोगे अवश्य ||
है यकीन मुझे अपनी बालसखा को निराश नहीं करोगे तुम
अपनी इस बालसखा को ऐसी अवस्था में नहीं छोड़ोगे तुम |
तुम आओगे और मुझे इन अधर्मियों से बचाओगे
और एक बालसखा होने का कर्तव्य निभाओगे ||
इतने में आगे बढ़ा दु:शासन द्रौपदी का चीर खींचने
तभी वहाँ पहुँच गए हैं माधव द्रौपदी की लाज बचाने |
द्रौपदी की लाज बचाने बालसखा का कर्तव्य निभाने
कौरव को औकात दिखाने सबको शर्मिंदगी का अहसास कराने ||
एक तरफ चीर खींच रहा दु:शासन
दूजी ओर उसे बढ़ा रहे थे भगवन |
चीर खींचते – खींचते थक गया किंतु मंशा ना पूरी कर सका दु:शासन
असफल हुए कौरव लाज बची द्रौपदी की क्योंकि एक तरफ वहाँ खड़े थे भगवन ||
दु:शासन के रक्त से केश धोने का संकल्प लिया द्रौपदी ने अपमान के बदले
दुर्योधन का जंघा तोड़ने का भीम ने संकल्प लिया द्रौपदी के अपमान के बदले |
सजा कुरूक्षेत्र में महाभारत का रण द्रौपदी के अपमान के बदले
हुआ कुरूवंश का महानाश एक नारी के अपमान के बदले ||
लेखक : यशवर्धन राज (बालेन्दु मिश्रा)
हिन्दी प्रतिष्ठा, स्नातक, कला संकाय
काशी हिन्दू विश्वविद्यालय, वाराणसी