द्रोपदी की पुकार
राज सभा में घोर सन्नाटा
छाया है तो क्या हुआ
बात इतनी है कि युधिष्ठिर
छल से हारा है जुआ
द्रोपदी को कटु भाषा का
मूल्य अब चुकाना होगा
आज दुशासन के हाथों
वस्त्र हरण करवाना होगा
हस्तिनापुर का इतिहास
अब इसे कैसे सहन करेगा
ये क्षण सदा के लिये अब
एक काला अध्याय बनेगा
क्या जड़ बने बैठे पाण्डव
कुछ भी नहीं कर पाएंगे
क्या द्रोपदी की मदद को
आज श्री गोविन्द आएंगे
दुर्भाग्य उस समय से ही
कौरवों के संग हुआ
जब सभा बीच चीर
द्रोपदी का भंग हुआ
भार इस जघन्य पाप का
धरा अब सह न सकेगी
लज्जा भरी अपनी व्यथा
किसी से कह न सकेगी
लाज की मारी द्रोपदी
जाेर जाेर से चित्कार रही
हे गोविन्द हे गोविन्द ही
केवल राेकर पुकार रही
किस मुँह काे लेकर योद्धा
वापस अपने घर जाएंगे
क्या द्रोपदी की मदद को
आज श्री गोविन्द आएंगे
सभी कायर योद्धाओं की
चेतना हो गई है विलुप्त
अत्याचार का नंगा नाच
रहेगा भी अब कैसे गुप्त
महाराजा धृतराष्ट्र सभा में
बैठे केवल सोच ही रहे हैं
देवव्रत भीष्म अपने को
आज जी भर कोस रहे हैं
आँखें उनकी बंद है पर
सुनने की क्या लाचारी
फिर सभा बीच मौन क्यों
बैठी हुई है महारानी गंधारी
क्या ये सब हस्तिनापुर काे
विनाश के मार्ग पर लाएंगे
क्या द्रोपदी की मदद को
आज श्री गोविन्द आएंगे
द्रोपदी की चीख विलाप
आज बेकार नहीं जाएगी
राज हस्तिनापुर की सारी
खुशियाें काे ही खा जाएगी
द्रोपदी अपने खुले बाल
अब अभी खुला ही रखेगी
और एक दिन दुशासन के
रक्त से ही बाल धुलवायेगी
काैरव अपने हाथों से ही
कुकर्मों का फल पाएगा
कुरु वंश के विनाश का
अन्तिम द्वार खुलवाएगा
बहरे भी नहीं हैं गोविन्द
जो पुकार सुन नहीं पाएंगे
द्रोपदी की मदद करने काे
अब श्री गोविन्द ही आएंगे