दौलतों के भूखे हैं
दौलतों के भूखे हैं फ़र्ज़ भूल जाते हैं
हक़ अवाम का खाकर कोठियां बनाते हैं
घूमते मिले बंदर, आज उस्तरा लेकर
घूंट खून के पीकर जान सब बचाते हैं
दौलतों के भूखे हैं फ़र्ज़ भूल जाते हैं
हक़ अवाम का खाकर कोठियां बनाते हैं
घूमते मिले बंदर, आज उस्तरा लेकर
घूंट खून के पीकर जान सब बचाते हैं