सियासत की सियासत
आकाश को छूने का जो जज़्बा नहीं होता
इंसान कभी चाँद पे पहुँचा नहीं होता
यह दौरे सियासत की सियासत है वगरना
“सूरज के इलाक़े में अंधेरा नहीं होता“
मेअमारे वतन कह के ही वो हमको बुलाते
मरने का हमें दोस्तो, सदमा नहीं होता
महबूब हैं वह सबके, जो रहते हैं नज़र में
हम जाँ भी लुटा दें, कहीं चर्चा नहीं होता
सय्याद की यह फ़ितना’गरी है कि मिरे दोस्त!
पीपल पे परिंदों का बसेरा नहीं होता
मंज़िल पे पहुंचना कोई मुश्किल न था लेकिन
रस्ते में अगर वक़्त लुटेरा नहीं होता
अपने ही मिरे जब, मिरे अपने न हुए तब
अब मुझको किसी पर भी भरोसा नहीं होता
जो दिन भी गुज़र जाए वह समझो है ग़नीमत
कल आएगा हमको यह भरोसा नहीं होता
जिस राह में दुशवारियाँ हाइल न हों ’अरशद’
रस्ता मैं समझता हूं वह रस्ता नहीं होता
© अरशद रसूल