Sahityapedia
Login Create Account
Home
Search
Dashboard
Notifications
Settings
18 Oct 2019 · 3 min read

दौड़

मैं देखता हूं कि मैं चारों ओर से आती भीड़ से घिर गया हूं ।
लोग मुझे धक्का मारकर आगे निकल जाते हैं ।
मैं धक्के खाकर एक तरफ खिसक पाता हूं और खड़ा देखता रहता हूं ।
कि इस भीड़ में सभी दौड़ रहे हैं व्यग्र , आतुर एक दूसरे से आगे निकलने की चेष्टा में एक दूसरे को धक्के देकर भीड़ के साथ बढ़ रहे हैं ।
इनमें तो कुछ के सामने पेट की आग और दो रोटी का प्रश्न है ।
कुछेक मतवाले शराबियों के लिए बोतल और बोटी का प्रश्न है ।
कुछेक के पेट भरे हुए हैं पर सामने टीवी , फ्रिज , स्कूटर ,या कार का सवाल है ।
कुछेक का तो बेटी की शादी के दहेज जुटाने में बुरा हाल है ।
कुछेक तो सर छुपाने की जगह तलाशते फिर रहे हैं।
तो कुछ तो दूसरों का पेट काटकर अपना घर भर रहे हैं ।
इनमें कुछेक के पेट भरकर फूल चुके हैं पर वे अपनी सत्ता की गोटी फिट करने में अपने आदर्श, संस्कार, नीति ,यहां तक कि मानवता को भी भूल चुके हैं।
जिसके पास है वो अधिक से अधिक हासिल करने की कोशिश में लगा है।
जिनके पास नहीं वह भी दौड़ता ही जा रहा है ।
कि चलो किस्मत ने साथ दिया तो कुछ तो हाथ लगेगा भागते भूत की लुटिया मिले या ना मिले लंगोटी से ही काम चलेगा ।
अनायास मैं यह देखकर चौंक उठता हूंँ कि भागते भागते भी लोग एक दूसरे पर वार कर रहे हैं ।
और जहांँ तहाँ
खून के फव्वारे उड़ रहे हैं ।
भाई भाई की गर्दन नाप रहा है । तो बेटा बाप को आंख दिखा रहा है।
एक ही उस्ताद के शागिर्द कल्लू और मल्लू पहलवान खून के प्यासे हो रहे हैं ।
दो दोस्तों को लड़ा कर तमाशा देखने वाले यारों के वारे न्यारे हो रहे हैं ।
इनमें कुछ दिलेर दो नंबर के पहिए वाले जूते पहनकर सपाटे से निकलने की फिराक में हैं ।
जिनमें कुछ नौसिखए खिलाड़ी रपटकर गिरकर अपनी कमर सहलाते दर्द भरी मुस्कान बिखेर रहे हैं।
इस दौड़ में किसान, मजदूर ,व्यापारी, कर्मचारी ,नेता, अभिनेता ,सब भागे जा रहे हैं।
अपनी अपनी ताकत लगाकर टंगड़ी अड़ाकर आगे जा रहे हैं।
कुछ धूल चाटते फिर कपड़े झाड़ते भागे जा रहे हैं।
शायद आगे निकलने के लिए भागना उनके जीवन का परम उद्देश्य है ।
पर सब दीवाने इस बात से बेखबर है
कि बिना किसी ध्येय के लक्ष्य की प्राप्ति नहीं होती।
क्योंकि अंधाधुंध दौड़ का कोई लक्ष्य नहीं होता ।इस दौड़ की परिणिति में अधोगति ही प्राप्त होती है।
संस्कार विहीन भीड़ का अनुसरण मानवता के स्थान पर दानवता को प्रेरित करता है ।
इस चक्र मे द्वेष, घृणा ,और लोलुपता का जन्म होता है ।
इस दौड़ में लड़खड़ा कर गिरने वालों को थामने वाला कोई नहीं होता ।
क्योंकि इस दौड़ में गिरने वाले मानव स्वार्थ
रूपी दानव के पैरों तले कुचले जाते हैं ।
यहां तक कि लोग अपनी दौड़ कायम रखते हुए छटपटाती ज़ख्मी जिस्मों और लाशों को रौंद कर आगे निकल जाते हैं ।

Language: Hindi
1 Like · 2 Comments · 363 Views
📢 Stay Updated with Sahityapedia!
Join our official announcements group on WhatsApp to receive all the major updates from Sahityapedia directly on your phone.
Books from Shyam Sundar Subramanian
View all
You may also like:
इंसान बहुत सोच समझकर मुक़ाबला करता है!
इंसान बहुत सोच समझकर मुक़ाबला करता है!
Ajit Kumar "Karn"
तुम्हारे लिए
तुम्हारे लिए
हिमांशु Kulshrestha
ख़ामोशी
ख़ामोशी
Dipak Kumar "Girja"
इतनी सी बस दुआ है
इतनी सी बस दुआ है
Dr fauzia Naseem shad
"कर्ममय है जीवन"
Dr. Kishan tandon kranti
शिक्षक को शिक्षण करने दो
शिक्षक को शिक्षण करने दो
Sanjay Narayan
नई पीढ़ी पूछेगी, पापा ये धोती क्या होती है…
नई पीढ़ी पूछेगी, पापा ये धोती क्या होती है…
Anand Kumar
नादानी
नादानी
Shaily
नौकरी (१)
नौकरी (१)
अभिषेक पाण्डेय 'अभि ’
मैं शब्दों का जुगाड़ हूं
मैं शब्दों का जुगाड़ हूं
भरत कुमार सोलंकी
मुकद्दर तेरा मेरा एक जैसा क्यों लगता है
मुकद्दर तेरा मेरा एक जैसा क्यों लगता है
VINOD CHAUHAN
2975.*पूर्णिका*
2975.*पूर्णिका*
Dr.Khedu Bharti
मिट्टी का बदन हो गया है
मिट्टी का बदन हो गया है
Surinder blackpen
सच तो रंग काला भी कुछ कहता हैं
सच तो रंग काला भी कुछ कहता हैं
Neeraj Agarwal
वक्त
वक्त
नंदलाल मणि त्रिपाठी पीताम्बर
आज कल रिश्ते भी प्राइवेट जॉब जैसे हो गये है अच्छा ऑफर मिलते
आज कल रिश्ते भी प्राइवेट जॉब जैसे हो गये है अच्छा ऑफर मिलते
Rituraj shivem verma
सीता रामम
सीता रामम
Rj Anand Prajapati
Be careful who you build with,
Be careful who you build with,
पूर्वार्थ
वह है बहन।
वह है बहन।
Satish Srijan
चुनौती  मानकर  मैंने  गले  जिसको  लगाया  है।
चुनौती मानकर मैंने गले जिसको लगाया है।
रामनाथ साहू 'ननकी' (छ.ग.)
दस्तक भूली राह दरवाजा
दस्तक भूली राह दरवाजा
Suryakant Dwivedi
#लघुव्यंग्य-
#लघुव्यंग्य-
*प्रणय*
अटरू ली धनुष लीला
अटरू ली धनुष लीला
मधुसूदन गौतम
तुम में और हम में फर्क़ सिर्फ इतना है
तुम में और हम में फर्क़ सिर्फ इतना है
shabina. Naaz
गणतंत्र दिवस
गणतंत्र दिवस
विजय कुमार अग्रवाल
Ghazal
Ghazal
shahab uddin shah kannauji
युवा दिवस विवेकानंद जयंती
युवा दिवस विवेकानंद जयंती
डॉ सगीर अहमद सिद्दीकी Dr SAGHEER AHMAD
عزت پر یوں آن پڑی تھی
عزت پر یوں آن پڑی تھی
अरशद रसूल बदायूंनी
दोहा
दोहा
Shriyansh Gupta
*मिलता है परमात्म जब, छाता अति आह्लाद (कुंडलिया)*
*मिलता है परमात्म जब, छाता अति आह्लाद (कुंडलिया)*
Ravi Prakash
Loading...