*चाँदी को मत मानिए, कभी स्वर्ण से हीन ( कुंडलिया )*
सुना है सपनों की हाट लगी है , चलो कोई उम्मीद खरीदें,
ग़ज़ल : रोज़ी रोटी जैसी ये बकवास होगी बाद में
*कुछ तो बात है* ( 23 of 25 )
हमराही
Sandhya Chaturvedi(काव्यसंध्या)
मेरी बिटिया बड़ी हो गई: मां का निश्चल प्रेम
*अब न वो दर्द ,न वो दिल ही ,न वो दीवाने रहे*
तुम्हें लगता है, मैं धोखेबाज हूँ ।
मेरा भाग्य और कुदरत के रंग..... मिलन की चाह