दो हाथ
कहने को दो हाथ ही पर कई सवाल बन जाते है,
छूए जो आपस में तो प्रार्थना बन जाते है,?
झुके जो आगे तो याचना बन जाते है,?
कहने को दो हाथ……।
छुए जो पैरों को सम्मान बन जाते है,
रखे जो सिर पर तो आशीर्वाद बन जाते है,
कहने को दो हाथ……।
पड़े जो कान पर तो अपमान बन जाते है,
थप थपाये जो पीठ तो अभिमान बन जाते हैं,
कहने को दो हाथ……।
दवाएं जो सर तो सेवा कहलाते हैं,
करे आलिंगन जो तो प्रेम दिखलाते हैं,
कहने को दो हाथ …..।
माँ की उंगली से चलकर चिता की अग्नि तक जाते हैं,
कहने को बस हाथ है पर सारा जीवन दिखाते हैं।