दो शे’र
इश्क़ में ग़म , तन्हाई , न जाने क्या क्या मिला ।
बेवफ़ाई हिस्से आयी , हिज्र का सहारा मिला ।।
हम समझ रहे थे बरसाकर मुहब्बत लौट गया होगा ।
फ़लक पर.. आज भी वो बादल आवारा मिला ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम
इश्क़ में ग़म , तन्हाई , न जाने क्या क्या मिला ।
बेवफ़ाई हिस्से आयी , हिज्र का सहारा मिला ।।
हम समझ रहे थे बरसाकर मुहब्बत लौट गया होगा ।
फ़लक पर.. आज भी वो बादल आवारा मिला ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ीकीक़लम