दो शे’र
मेरा चाँद तो बहुत शर्मीला है ।
चाँद रातों को दीदार नहीं होते ।
जो आ जाता एक बार फ़लक पे ।
हर शब हम यूं बीमार नहीं होते ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर
©काज़ीकीक़लम
मेरा चाँद तो बहुत शर्मीला है ।
चाँद रातों को दीदार नहीं होते ।
जो आ जाता एक बार फ़लक पे ।
हर शब हम यूं बीमार नहीं होते ।।
©डॉक्टर वासिफ़ काज़ी ,इंदौर
©काज़ीकीक़लम