दो शे’र – चार मिसरे
इश्क़ से रोशन मिरी दुनिया है ।
मुझे तीरगी से डर नहीं लगता ।।
वो जबसे गए हैं रूठकर मुझसे ।
अपना घर भी घर नहीं लगता ।।
©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम
इश्क़ से रोशन मिरी दुनिया है ।
मुझे तीरगी से डर नहीं लगता ।।
वो जबसे गए हैं रूठकर मुझसे ।
अपना घर भी घर नहीं लगता ।।
©डॉ. वासिफ़ काज़ी , इंदौर
©काज़ी की क़लम