दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
दो रुपए की चीज के लेते हैं हम बीस
तेरह करते तीन के, सम्भव हो तो तीस
न्याय नीति ईमान से अपना पल्ला झाड़
सरकारों पर दोष मढ़, कीचड़ रहे उलीच
कीचड़ में खिलता कमल, लोग गये यह भूल
बेमतलब की बात को, ज्यादा देते तूल
खाते में धेला नहीं, मांग रहे हैं सूद
सूद नहीं मिलता कभी, यदि न जमा हो मूल
महेश चन्द्र त्रिपाठी