दो यार दीवाने
**दो यार दीवाने (ग़ज़ल)**
***2212 2222 1 2***
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महबूब ख्वाबों में आने लगे,
वो नींद में भी बहकाने लगे।
ढा के सितम हम से हैं जुदा,
तेरी जफ़ा से घबराने लगे।
निज बास से महकाया जिसे,
खुश्बू कहीं पर महकाने लगे।
मदिरा पिलाई आँखों से हमें,
मय के है वहाँ मयख़ाने लगें।
साजन मिला है हरजाई बड़ा,
हम प्रेम कर के पछताने लगे।
जब रात को उठकर रोने लगे,
प्यारे शमां के परवाने लगे।
नादान मनसीरत पागल हुआ,
दो यार बरसों के दीवाने लगे।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)