दो बूँद
दो बूंद जो बरस जाए
********
झुलस गई हरीतिमा ,
नष्ट हुई मानव चेतना
तप रही ये धरा- गगन ,
निलाम्बरा अब तू हट छोड़ दे…..
दो बूंद शीतल जल की,
अंबर गागर से उड़ेल दे….
उष्ण पवन के झोंके,
क्रोधकी आग बरसाते।
लाल आँखें दिखा सूरज भी
अपनी धाक जमाते।
कोकिल के रूँधे कंठ पुकारे,
मेघ अब तू मुख मोड़ दे…
दो बूंद शीतल जल की,
अंबर गागर से उड़ेल दे….
दो बूंद जो बरसा जाए मेघा
धरा ये जीवन फिर से पाए,
इन्द्रधनुष के रंग सब फीके
उनको फिर से जोड़ दे ………
दो बूंद शीतल जल की
अंबर गागर से उड़ेल दे…….