*दो नैन-नशीले नशियाये*
दो नैन-नशीले नशियाये
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दो नैन-नशीले नशियाये,
सुख-चैन चुराये बहकाये।
यूँ देख रही चोरी – चोरी,
वो नैन-झुकाये शरमाये।
नजरें है कटीली सुरमायी,
वो लंक-लचीली मटकाये।
वो नार- हठीली जहरीली,
पर लाड़-लड़ाये ललचाये।
है नीर – दिखाये परछाई,
यूँ शाम सुबह है बहलाये।
चल चाल-चले ,चंपू गाये,
मय जाम भरे हैँ बरसाये।
जां मार मुकाये मनसीरत,
जब लार-रसीली टपकाये।
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सुखविंद्र सिंह मनसीरत
खेड़ी राओ वाली (कैथल)