दो दोहे
व्यवहार एक चाहिए,
सहज समंवय होय,
जो पल्ले कुछ भी नहीं,
तो भी परिचय होय.
.
मंहगाई डायन मारती,
अभाव में देती झोंक,
चक्रवृद्धि कर ज्यों बढ़े,
रोक सके तो ले रोक.
व्यवहार एक चाहिए,
सहज समंवय होय,
जो पल्ले कुछ भी नहीं,
तो भी परिचय होय.
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मंहगाई डायन मारती,
अभाव में देती झोंक,
चक्रवृद्धि कर ज्यों बढ़े,
रोक सके तो ले रोक.