दो दोस्त- एक शिक्षाप्रद कहानी
दो पक्के दोस्त कहीं जा रहे होते हैं..सब कुछ अच्छे से चल रहा होता है..रास्ते में एक बाधा आती है नदी के रूप में..दोनों में से एक को तैरना नहीं आता था..दूसरे को थोड़ा बहुत तैरना आता था..तैराकी जानने वाले दोस्त ने दूसरे दोस्त को अपने विश्वास में लिया और चल पड़ा दोस्त का हाथ पकड़कर नदी की ओर…बीच रास्ते में एक भँवर आया और तैराक दोस्त घबरा गया और अपने डूबते दोस्त को वहीं छोड़कर भाग खड़ा हुआ…डूबता दोस्त “बचाओ बचाओ” चिल्लाता रहा..आखिरकार डूबने से तो बच गया..किसी ने डूबने से बचा लिया था..शरीर के जख्म तो कुछ दिन में ठीक हो गये..मन के घाव कभी ठीक नहीं हो पाये क्योंकि जिस दोस्त पर वो इतना विश्वास करता था वो बीच भँवर में छोड़कर भाग गया था..उसने तो अपने दोस्त की गल्ती को माफ़ कर दिया था लेकिन उसके दोस्त ने उससे अपने स्वभाव के लिये माफ़ी कभी नहीं माँगी..इसके विपरीत ज़िंदगी भर उसे ही दोषी ठहराता रहा कि “तुम्हें ही ठीक से तैरना नहीं आता था”. दूसरा दोस्त उसे हमेशा उसकी गलतियों के लिये माफ़ करता रहा और अपने निस्वार्थ प्रेम की दुहाई देता रहा..लेकिन जहाँ गहरा विश्वास नहीं होता वहां इन बेकार शब्दों के कोई मायने नहीं होते..जहाँ मतलब होता है वहाँ दोस्ती कैसे हो सकती है़.
आखिरकार दोस्त ने आहत होकर अपने दोस्त से दूर जाने में ही भलाई समझी..यही सोचते हुए कि “सच्चा रिश्ता हमेशा दिलों में ज़िन्दा रहता है..दिल में सम्मान होना चाहिए..कभी तो समझ आयेगी..मेरे कर्म मेरे सामने, उसके कर्म उसके सामने”..हमेशा हमेशा के लिये अपने दोस्त से दूरी बना ली..तैराक दोस्त ने अपने स्वार्थ और संकीर्ण सोच के चलते अपनी एक सच्ची दोस्ती का गला हमेशा के लिये घोंट दिया था.
Moral of this story :- कभी किसी की भावनाओं के साथ नहीं खेलना चाहिए..शरीर की अपेक्षा मन के घाव बहुत गहरे होते हैं..अक्सर हम अपने सच्चे रिश्ते स्वार्थवश ऐसे ही खो देते हैं. गलती होने पर जो इंसान उसे सुधारने का कोई प्रयास नहीं करता..अपनी गलतियों के लिये कभी माफ़ी नहीं मांगता..किसी की अच्छाई को हमेशा बेवकूफ़ी समझता रहे ऐसा इंसान कभी किसी की सच्ची दोस्ती के लायक तो क्या वो कभी अपना भी सच्चा दोस्त नहीं बन सकता..कितना भी खुश रहने का दिखावा क्यों न करे..कभी खुश नहीं रह सकता..क्योंकि अंधेरा अंधेरा ही होता है..अंधेरा कभी उजाले में रह सकता है क्या ?
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