‘दो दिल मिलन की घड़ी आ गई’
मिलन की घड़ी आ गई,
समझो दो दिल मिलन की घड़ी आ गई|
चाँद परछाई सागर में जब दिखने लगे,
तितली फूलों से छुप-छुपके मिलने लगे|
समझो दो दिल मिलन की घड़ी आ गई||1||
फूल आगोश में ले भँवर को कभी,
बाग में पंखुड़ी जब फैलाने लगे|
समझो दो दिल मिलन की घड़ी आ गई||2||
रसास्वादन करे भँवरा अंतर में,
अरविंद होंठों से कँप-कँप कँपाने लगे|
समझो दो दिल मिलन की घड़ी आ गई||3||
मुख से सरिता जब प्रेम की बहने लगी,
उर में बरसात ममता की होने लगी|
समझो दो दिल मिलन की घड़ी आ गई||4||
✍के.आर.परमाल ‘मयंक’