दो जून की रोटी
दो जून की रोटी,प्रभु सबको मिल जाए।
छोटी हो या मोटी,ये सबको मिल जाए।।
दो जून की रोटी,बड़ी किस्मत से है मिलती।
मेहनत करता है मजदूर तब कही ये मिलती।।
दो जून की रोटी के लिए सब करतब है दिखाते।
सर्कस रूपी दुनिया में,जान की बाजी है लगाते।।
दो जून की रोटी,मुझे इश्क से भी बेहतर लगी।
बेवजह मुस्कराहट,मुझे अश्क से बेहतर लगी।।
दो जून की रोटी का दर्द,कहां समझती है दुनिया।
रोटी के चोर को सिर्फ,चोर समझती है ये दुनिया।।
दो जून की रोटी के लिए,सारे दिन भटकता है पिता।
उसके परिवार को रोटी मिले,खुश होता है ये पिता।।
दो जून की रोटी के लिए सुबह से शाम हो गई।
आज के दौर में,रस्तोगी के लिए ख्वाब हो गई।।
आर के रस्तोगी गुरुग्राम