दो जूते।
मैं दिल्ली घूमने गया था। वहां एक ग़ज़ब नजारा देखा। वैसे भी दिल्ली अजब गजब नजारों के लिए मशहूर है। एक मंत्री मा र्ले ना पानी के लिए उपवास पर बैठती है तो उसकी खूबसूरती पर इंद्र देवता इतने मोहित होते हैं , उसकी तपस्या से इतने खुश होते हैं कि कुछ दिनों के बाद देश के बाकी हिस्सों का पानी भी दिल्ली में इतनी फराख़ दिली के साथ उड़ेलते हैं कि पूरी दिल्ली डूब जाती है।
वापस अपनी बात पर आता हूं। देखता हूं कि सड़क पर एक जोड़ी जूते चल रहे हैं। अजीब बात यह थी कि पहले एक जूता कुछ दूर तक उछल उछल कर यूं चलता जैसे कोई उसके भीतर बैठकर अंदर से उसे उछाल रहा है। उसके पश्चात दूसरा जूता उसके पास पहुंचता।
मैं बड़ा हैरान , और यह देखकर और भी हैरान कि मेरे सिवाय कोई भी नहीं हैरान !
बगल से गुजर रहे एक व्यक्ति से पूछा – भाई ये क्या बला है ?
उसने मुझे उपर से नीचे तक देखा – लगता है , घूमने आए हो , दिल्ली के होते तो ऐसा सवाल नहीं करते।
मैं – ऐसा क्यों कह रहे हैं ?
व्यक्ति – वह सामने बनी नई इमारत दिख रही है।
मैं – दिख रही है। वह बड़ी चर्चित है। अब वहीं से हम लोगों के भाग्य का फैसला होगा।
व्यक्ति – एक्सेक्टली, उस इमारत में एक व्यक्ती को वह पद हासिल हो गया है , जिसके लायक वह रत्ती भर भी नहीं है।
मैं (बीच में टोकते हुए) – पर उस बिल्डिंग से इन जूतों का क्या संबंध ?
व्यक्ति – शांत रहो बताता हूं। उस व्यक्ति का कद इतना छोटा है कि वह एक साथ दोनों जूते पहन नहीं सकता। जाना उसे उन्ही जूतों में है। इसलिए पहले एक में घुस कर उसे आगे धकेलता है , फिर वही प्रक्रिया दूसरे में दोहराता है।
मैं – माना वहां तक पहुंच भी गया तो अंदर कैसे जाएगा ?
व्यक्ती – पहुंचने के बाद जूते छोड़कर अंदर जाएगा। वैसे ही जैसे हम लोग मंदिर जाते समय जूता चप्पल बाहर छोड़कर जाते हैं।
मैं – पर वह दिख भी नहीं रहा , कितना छोटा है ?
व्यक्ति – इतना छोटा है कि कभी हम लोगों पर राज नहीं कर पाएगा , कोशिश कितना भी कर ले।
मेरी तो कुछ समझ में नहीं आया। कुछ देर तक जूतों की चाल का कमाल देखता रहा।
फिर दिल्ली के दूसरे अजूबों को देखने के लिए आगे बढ़ गया।
Kumar kalhans