दो कुर्सियाँ
दो कुर्सियाँ
माँ के
ड्रॉइंगरूम में
सोफों के साथ
मेज के दूसरी ओर
दो कुर्सियाँ रहती थीं
जिन पर
मैं और माँ बैठ कर
चाय पीते हुए
दुनिया-जहान की
बातें किया करते थे,
सोफों पर बैठना
हमें दोनों को ही भाता न था
कुर्सियों पर पीठ सटा कर
बैठने का आनंद ही
कुछ अलग सा था,
माँ-पापा के जाने के बाद
अब वे दोनों कुर्सियाँ
मेरे ड्रॉइंगरूम में रखी हुई हैं
शाम की चाय
मैं इन्हीं पर बैठ कर पीती हूँ
तब धीरे से आकर
माँ भी दूसरी कुर्सी पर
बैठ जाती है
तब हम हँसते-खिलखिलाते हैं
अपना सुख-दुख बाँटते हैं
सोफे पर बैठे पिता
हमें बातों में लीन देख मुस्कुराते रहते हैं
फिर दोनों अपने धाम लौट जाते हैं।
#डॉभारतीवर्माबौड़ाई