दो कुण्डलिया -होली पर्वपर काव्य नाटिका
होली का उल्लास है , खुशियों का त्योहार ,
रंग बिरंगे हो गए , जीवन के व्यापार ।
जीवन के व्यापार , यार सब खेलें होली ,
फगुआ गायें वीर , चले गोली पर गोली ।
कह प्रवीण कविराय , न झेलें नफरत , गोली ,
रंगों का त्योहार , प्यार से खेलें होली ।
निधि वन में है खोजते , मृग समूह जल भास ,
बजी बांसुरी कृष्ण की , भूल गए सब प्यास ।
भूल गए सब प्यास , कृष्ण संग राधा नाचें ,
हरि की सब को आस , राधिका मन में वाचें ।
कह प्रवीण कविराय , श्याम संग खेले जन –जन ,
राधा कान्हा संग , गोपियाँ खेले निधि वन ।
डा प्रवीण कुमार श्रीवास्तव ,
सीतापुर , 21-03-2019