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14 Dec 2019 · 1 min read

दो उंगलियाँ

कैद है नफ़्स के दरमियाँ
उसकी दो उंगलियाँ जो
कभी मचली थी दिल पे
और धड़क उठा था दिल
उसका और वो ही थी
जो जेहन में बे इख़्तियारी
रखे हुए बे कस थी
खुद अपने दरमियाँ
शायद पता था उसे
नफ़्स में उसका ज़िक्र
छिड़ चुका होगा और
वो अनजान है दिल के
कोने में समाये हुए उन
दो उंगलियों से जो
समा चुकी है नस-नस में
नफ़्स के और मुतमुइन है
मिलने को आपस में उनसे
जो इस्बात है इश्राक का
जिससे चमक रहा है ये
दिल और क़ैद है नफ़्स की
वो हरकतें जो मचलती थी
कल तक तुम्हे देखकर
ए मेरी जान-ए-ग़ज़ल।।

-आकिब जावेद

इस्बात = प्रमाण, साक्ष्य, सबूत
इश्राक़ = उषा, प्रभात, चमक

Language: Hindi
1 Like · 397 Views
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