दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
दो अनजाने मिलते हैं, संग-संग मिलकर चलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
पति का नाम भरोसा है, पत्नी का नाम समर्पण
पति-पत्नी एक दूजे पर कर देते हैं सब अर्पण।।
पति के उदास होते ही पत्नी के आँसू निकलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
नोंक-झोंक भी इस रिश्ते की एक निशानी होती है
रूठने और मनाने से मशहूर कहानी होती है।।
जीवन रूपी गाड़ी के दो पहिये कभी ना बदलते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
‘हम दो-हमारे दो’ की घड़ी सुहानी आती है
पुत्र पिता का, पुत्री माँ का बचपन फिर से लाती है।।
सोलह संस्कारों में ‘विवाह’ को सब शास्त्र श्रेष्ठ समझते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
शादी का लड्डू वास्तव में अपना असर दिखाता है
खानेवाला पछताता है और न खानेवाला ललचाता है।।
खाकर पछताने में ही फ़ायदा है, बड़े-बुज़ुर्ग यह कहते हैं
सुख-दुःख के साथी हैं दोनों, गिरते और संभलते हैं।।
विवाह किया है तो विश्वास करना अपने जीवनसाथी पर
कान देखना, कौआ नहीं, बात-बात पर मत जाना लड़।।