दोहे
कृपा हो करुणाकर की, सधै काम अति शीघ्र।
बाकी चाहे मर मिटो, दौड़ करो अति तीव्र।।
कमला कमलाकांत बिन रहती बड़ी उद्विग्न।
जब तक दोऊ संग हैं, काम होत निर्विघ्न।।
मन रत हो यदि राम में, डूबे नहिं मझधार।
राम नाम का सङ्ग तो , भवसागर हो पार।।
राम राम जप रे भाई! यही बने आधार।
अन्तकाल भवसिन्धु पड़े, बनते ये पतवार।।
ये तन पाया क्या किया, व्यर्थ गया अनमोल।
राम नाम के जाप से , माटी कर ले सोन।।
कण कण बसते राम हैं, कुछ भी नहीं अशेष।
रंग रूप काया नहीं, जग में कर्म विशेष।।