*दोहे*
मंदिर -मस्जिद का सदा, अजब निराला रंग!
करनी पर इंसान की, रब भी अब हैं दंग!!
नेता हैं जो देश के, देते सबको त्रास!
गै़र सभी इनके लिये, ये कुरसी के दास!!
नेताओं ने आज के,रच डाला इतिहास!
हज़म करें ये कोयला,खाते हैं फ़िर घास!!
मिलती है हर शै नहीं, दौलत के बाज़ार!
काम सदा आती दुआ, जब होती दरकार!!
अलंकार होते सदा, कविता का श्रृंगार!
इनके बिन फ़ीके लगें,सारे ही उदगार!!
माँ शारदेय ने किया, हम पर है उपकार!
उसकी रहमत से सजा, कवियों का संसार!!
मानवता छलनी हुई, दानव का सह वार!
अपना था माना जिसे, निकला वह गद्दार!!
नफरत की हैं आँधियां, ज़ुल्मों की भरमार!
नीच पड़ोसी को सदा,जूतों की दरकार!!
ज्ञानी जन जो तज रहे,आज सभी सम्मान!
सोचा किंचित ये नहीं, किसका है अपमान!!
इस कलियुग में हो गया,सच का बँटाधार!
चहुंओर ही झूठ का, अब तो है आधार!!
धर्मेन्द्र अरोड़ा
“मुसाफ़िर पानीपती”