दोहे
लेकर धजा विकास की , उड़ा गगन में यान !
भूखे प्यासे ताकते , उसको सीना तान !!
मिले शाम को शेर से , वन के सभी सियार !
किए गए आखेट पर , हो आधा अधिकार !!
चली गबन पर बात वो , बोला आँख तरेर !
बकरी चरती पास में , कैसे सोए शेर !!
कलम और शमशीर में , रही सदा से रार !
रुके न इसके लेख तो , थमे न इसके वार !!
नगद लिया फिर दे दिया , सारा माल उधार !
कहते हैं अब लोग ये , गई शराफत मार !!
धीरज कहे विवेक से , मत खोना तू होश !
बेबस होकर क्रोध अब , गया जगाने जोश !!
हमने खुद तकनीक के , दे दी हाथ नकेल !
अब बचपन को लीलता, मछ्ली वाला खेल !!
चोर गया परदेश में , लूट वतन का माल !
टीवी पर विद्वान अब , बजा रहे हैं गाल !!
रोटी दिखला भूप ने , भरा बात से पेट !
भूखों खातिर कब खुला , बंद महल का गेट !!
संकट सैनिक शीश अब , विपद में कृषक पाग !
राजा फिरे अलापता , बस अपना ही राग !!
कहकर यूँ भावुक हुए , सेठ किरोड़ी लाल !
धन मिला पर मिली नहीं , सुख की राेटी दाल !!
मेरी ये तकदीर भी , निकली बड़ी अजीब !
अपनों ने मारा तभी , छाया हुई नसीब !!
मरे पूस की शीत में , फुटपाथों पर लोग !
जेठ मास में जाँच को , हुआ गठित आयोग !!
मन के भावों का हुआ , निज हित पर टकराव !
उस दम मरा विवेक भी , करते बीच बचाव !!
बातों से बनती नहीं , जब भी कोई बात !
हो जाता तब लाजिमी , बतलाना औकात !!
खेल सियासी देखकर , होता बहुत मलाल !
एक ताँत खातिर करें , जिसमें सांड हलाल !!
नाप जोख करते समय , देखा खेल अजीब !
हाकिम के संकेत पर , बढ़कर घटी ज़रीब !!