दोहे
देश बदल गऔ भेष बदल गओ
बदल गई पहचान |
दो अंगुल के कपड़ा पहने भारत
को इंसान ||
गलियन गलियन गईयाँ धूमे,
लोगन रहे भगाय |
मरे विचारी तड़प तड़प के कोई
न उन्हे चराये ||
धोती कुर्ता भूल गये सब,
लगे पहनने टाप |
बेटा कहता है बाबुल से
मे हूँ तेरा बाप ||
लाज शरम को नही ठिकाने,
भूल गये सब लाज |
जींस और नये टाप पहनके
कर आये सब काज ||
छोटे छोटे पहन के कपड़े,
गलियन फिर रहे लोग |
माँस वियर की बाटल धरके,
लग रहे छप्पन भोग ||
कृष्णकांत गुर्जर
धनोरा