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9 Jan 2018 · 1 min read

दोहे

काल गाल में बसत हैं, करते नित्य कुकर्म।
बाबा रूप बना लिए, नहिं जाने सद्धर्म।।

या तन विष की बल्लरी,जानत है हर कोय।
माया मोह अधर्म में ,मानुष जीवन खोय।।

चमक दमक मन मोहती,करवाये दुष्कर्म।
चर्म कांति को खोजते ,इससे बढ़ा अधर्म।।

रचनाकार – कौशल कुमार पाण्डेय “आस”

Language: Hindi
436 Views
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