एक चतुर नार
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एक नार निकली चतुर, करके सब श्रृंगार।
धीरे-धीरे से धुसी, मेरे मन के द्वार।। 1
उस नारी का दास मैं, जिससे लागे नैन।
भटक रहा हूँ राह में, मिल जाये तो चैन।। 2
का-का कर कितना करे, कारे कागा शोर।
उस नारी के संग ही, लागे नैना मोर।। 3
इंदु, चकोरी, चाँदनी , उस नारी का नाम।
दुनिया नाचे ताल पे, ता ता थइया राम।। 4
ये चतुर होशियार है, समझ न इसको गाय।
चक्कर छोड़ेगा नहीं, मर जायेगा हाय।। 5
चतुराई दुनिया करे, लाख बिछाये जाल।
छुट्टी सबकी वो करे, सीधी कर दे चाल।। 6
बड़ी निगोड़ी चाँदनी, कितना मुझे जलाय।
छिटके तो चुपचाप से, चित मोरा बिसराय।। 7
????—लक्ष्मी सिंह?☺