ग़ज़ल(गुलाबों से तितली करे प्यार छत पर —)————————–
गुलाबों से तितली करे प्यार छत पर
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रुकी है हवाओं की रफ्तार छत पर
गुलाबों से तितली करे प्यार छत पर।
अभी तो खिला है ,नया गुल गुलाबी
हवाओं ने छेड़ी ,अभी रार छत पर।
हुआ हाल कैसा हमारा तुम्हारा
बनी बात कैसे ये अखबार छत पर।
महकती हुई ये गली कह रही है
कि दो दिल मिले हैं अरे यार छत पर।
बहकती हुई फिर लगी चाँद राते
हुई जब मुहब्बत की इमतार छत पर।
डॉक्टर रागिनी शर्मा इंदौर