दोहे
प्रभु मेरे क्या हो गया, पटरी नीचे ट्रेन
स्वर्ग सिधारे लोग सौ, यात्री हैं बेचैन |
बच्चे हुए अलग अलग, सन्तति बिन माँ बाप
मिली सजा निर्दोष को, किसका है यह पाप ?
आंसू अब थमता नहीं, रोते बच्चे देख
आश्रय हीन अनाथ को, चाहिए देख रेख |
गहरी निद्रा में मग्न थे, विपदा से अनजान
निद्रा में ही दी गवाँ, अपनी अपनी जान |
रब अब हमें करे कृपा, होकर मेहरवान
घायल लोगों का सभी, बच जाय सकल जान |
©कालीपद ‘प्रसाद’