दोहे
जीवन की ये चाकरी
मुझको नहीं सुहाय
थामूं बहिया अापकी
मुझको लियो बुलाय
तुझको सुमिरन सब करें
जोगी भया न कोय
मेरे मन आके बसो
भोग जोग इक होय
कच्ची मिट्टी का घड़ा
छू मिट्टी बन जाय
किस विध अा तुझसे मिलू
मैं से तू हो जाय
कैसी जग की रीत ये
अंधे सब अंजान
गूंगा बहरा सच बना
झूठा है बलवान
रब को जग ढूंढे फिरे
हिय में देखो कोय
कस्तूरी मृग नाभि में
खोजे वन वन मोय