दोहे
जिसको अपने आप पर होता है विश्वास।
उसको कुुुछ दुर्गम नहीं ,सब कुछ उसके पास।।
वन्दनीय माँ भारती ,वन्दनीय शुचि देश ।
जिसकी गोदी खेलकर , हमसब हुए विशेष ।।
प्रिय के स्वर ने कर दिए , झंकृत मन के तार ।
प्यार-प्यार ही गूँजता , मन में बारम्बार ।।
एक तरफ सम्वेदना , दूजी तरफ न चाह ।
ऐसे में कैसे भला, रिश्तों का निर्वाह ।।
महल सो रहे बेखबर , वर्षा मूसलधार ।
कांप कांप कर झोपड़ी , सहती भीषण मार ।।
सतीश पाण्डेय