दोहे
कौन बिछाये बाजरा कौन चुगाये चोग
देख परिन्दा उड गया खुदगर्जी से लोग
लुप्त हुयी कुछ जातियाँ छोड गयीं कुछ देश \
ठौर ठिकाना ना रहा पेड रहे ना शेष
कौन करेगा चाकरी कौन उठाये भार
खाने को देती नही कुलियों को सरकार
धन दौलत हो जेब मे ,हो जाते सब काम
कलयुग के इस दौर मे चुप बैठे हैं राम
जहाँ जिधर भी देख लो रहती भागम भाग
देख लगे जैसे सभी चले बुझाने आग